कल रात मैं ऐसा सपना देखना चाहता था कि महात्मा गाँधी जी मेरे सपने मैं आयें तब मैं उनसे पूछूं कि गाँधी जयन्ती पर मैं आपके लिये क्या करूँ ? अफसोस यह सपना मैं ना देख सका, फिर आज मैंने जागती आँखों से सपना देखा, मेरे प्रशन पर वह बोले तुम अपने पिछले हफते की व्यसतता को याद करो, तुम्हें मेरा उत्तर अपने आप मिल जायेगा, कल जब मुझे ब्लाग जगत में वायरस कहा गया, ब्लागवाणी बंद होना जो मुझे Rank-2 ब्लागर होते हुये भी रजिसट्रेशन देने से कांपती है ऐसी बातों को याद करता गया, चिपलूनकर साहब की पोस्ट पर जाकर दिल दिमाग हर तरफ से यही आवाज़ आयी कि गाँधी जी का इशारा उस ओर हे जिस पोस्ट पर हिन्दू-मुस्लिम ही नहीं सर्वोधर्म का अनूखा प्रेम देखने को मिला था, सोचा गाँधी जयन्ती पर उसके लिये गाँधी समर्थकों से समर्थन मांगा जाये, किया मैं गलत हूं अपने विचारों से नवाजि़ये
क्या "नेस्ले" कम्पनी, भारत के बच्चों को "गिनीपिग" समझती है?:
please comments that post
ब्लागस्पाट पर सबसे सफल और सार्थक बहस, जिसकी बुरी नजर से बचाय रखने की गारंटी, किसी ने इस कम्पनी का दूध पी रखा हो तो आजाये सांकल खुली है
----
मेरे गाँधी से संबन्धित प्यार बढाने वाले लेख गाँधी जी कहते थे टीपु सुल्तान हिन्दू हित में अधिक था
गाँधी जी के गवर्नर मित्र का औंरंगज़ेब बार में लेख, औंरंगज़ेब ने मन्दिर तोडा तो मस्जिद भी तोडी
Use comments Power
Friday, October 2, 2009
Wednesday, June 10, 2009
'दुनिया सुन ले कि मैंने इस्लाम क़बूल कर लिया है' -- कमला
'कमला सुरैया chitthajagat' गूगल में सर्च करो तो सामने आता है 'कमला दास सुरैया की कविताओं में कुत्ता', मैंने antimawtar.blogspot.com को कुछ समय के लिये छोडा और ले आया ऐसा लेख जो कमला जी से संबन्धित बकवास का उत्तर भी है,=== हिन्दी जगत जानले कुत्ता इसलाम में नापसन्दीदा जानवर है, मुसलिम इसे शौकिया नहीं पाल सकता, हिफाज्रत की नीयत से पाला जा सकता है इससे दूरी बनाये रखनी तब भी होगी, कुत्ता से संबंन्धित स्वगींय कमला जी की कविताओं बारे में अनुमान से कह सकता हू कि वह इस्लाम कबूल करने से पहले की होंगी, क्योंकि उन्होंने एक इन्टरवयू में कहा था कि ‘मैं आगे केवल खुदा की तारीफ पर आधारित कविताएँ लिखूँगी।'
दूसरे कामेंटसः
कमला सुरैया के जन्म की तारीख भी 31(मार्च)थी और उनका निधन भी 31(मई)2009 तारीख को हुआ.
इस्लाम धर्म स्वीकार करने के पीछे उन्होंने अपना इरादा और फ़ैसला कभी वास्तविक तौर पर ज़ाहिर नहीं किया.
उपरोक्त लेख के लेखक को भी वास्तविक तौर पर इस लेख से पता चल जायेगा क्यूं कमला जी इस्लाम में गईं,
जन्म की तारीख और निधन की तारीख लिखकर हमें कितनी खुशी दी इस लेखक ने,, ऐसा केवल मुहम्मद सल्ल. के साथ हुआ कि जन्म और निधन की तारीख एक हों, अल्लाह जन्नत नसीब करे इस बेबाक लेखिका को,आमीन--- मुहम्मद उमर कैरानवी
islaminhindi.blogspot.com
0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0
स्वगींय श्रीमती डाक्टर कमला सुरैया(केरल, भारत) (पारिवारिक नाम डाक्टर कमलादास) उपन्यासकार हैं, कवयित्री हैं और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध् लेखिका और शोधकर्ता हैं। उन्होंने 12 दिसम्बर 1999 ई. को इस्लाम स्वीकार किया तो भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के धार्मिक और शैक्षिक क्षेत्रों में तहलका मच गया। नीचे उनके इस्लाम क़बूल करने की घटना ब्यान की जा रही है। यह लेख कई अलग-अलग लेखों की सहायता से तैयार किया गया है।
........
डाक्टर कमला सुरैया 1934 ई. में दक्षिणी भारत के केरल राज्य के एक इलाक़े पन्ना पूरकलम (जनपद थ्रेसर) में पैदा हुईं। उनका सम्बन्ध नायर जाति के एक अमीर हिन्दू घराने से है। उनकी माँ निलापत बिलामनी मलयालम भाषा की कवयित्री थीं, जबकि पिता बी. एम. नायर प्रसिद्ध पत्रकार थे और एक ही समय में दो पत्रिकाओं के सम्पादक थे। उनके पति स्वर्गीय मध्वादास इण्टरनेशनल मानीटरी फण्ड (IMF) के सीनियर कंसलटेंट थे।
खुद डाक्टर कमला सुरैया एक समय तक अंग्रज़ी की अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका इलस्ट्रेटेड वीकली आफ़ इण्डिया की सम्पादक कमेटी में शामिल रहीं। वे केरल की चिल्डेªªन फिल्म सोसाइटी की अध्यक्ष थीं। केरल के फारेस्ट्री बोर्ड की चेयर पर्सन थीं और मासिक पत्रिका ‘पोयट‘ की ओरिऐंट एडीटर थीं।
डाक्टर सुरैया एक ही समय मलयालम और अंग्रेज़ी भाषाओं में लिखती हैं। वे उपन्यासकार भी हैं, कहानीकार भी और कवयित्री भी। इस प्रकार विभिन्न हवालों से मलयालम में उनकी बीस से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं और बहुत पसन्द की गई हैं। इनके नावल 'Entekatha' का पन्द्रह विदेशी भाषाओं में अनूवाद हो चुका है। इसी प्रकार अंग्रज़ी में उनकी पाँच किताबें हैं और बडी लोकप्रिय हुई हैं। 1964 ई. में इन्हें ‘एशियन पोएटरी प्राइज़‘ दिया गया। 1965 ई. में इन्हें केंट अवार्ड, एशियन वल्र्ड प्राइज़ और एकेडमी अवार्ड दिए गए। 1967 ई. में इन्हें 'Vayalar' अवार्ड मिला। जबकि 1969 ई. में उनके कथा-लेखन पर उन्हें केरल साहित्य एकेडमी अवार्ड का सम्मान मिला। कई देशी और विदेशी यूनीवर्सिटियों ने इन्हें डाक्ट्रेट की मानद डिग्रियाँ प्रदान की हैं।
इन आसाधरण शैक्षिक, साहित्यिक तथा लेखन और शोध सम्बन्धी योग्यताओं के साथ इस प्रसिद्ध महिला ने 12 दिसम्बर 1999 ई. को केरल के शहर कोचीन में एक शैक्षिक एवं साहित्यिक समारोह को सम्बोधित करते हुए उपमहाद्वीप के राजनीतिक, धार्मिक और शैक्षिक क्षेत्रों में इस रहस्योद्घाटन से सनसनी फैला दीः ‘‘दुनिया सुन ले कि मैंने इस्लाम क़बूल कर लिया है, इस्लाम जो मुहब्बत, अमन और शान्ति का दीन हैं, इस्लाम जो सम्पूर्ण जीवन व्यवस्था है, और मैंने यह फैसला भावुकता या सामयिक आधारों पर नहीं किया है, इसके लिए मैंने एक अवधि तक बडी गम्भीरता और ध्यानपूर्वक गहन अध्ययन किया है और मैं अंत में इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि अन्य असंख्य खूबियों के अतिरिक्त इस्लाम औरत को सुरक्षा का एहसास प्रदान करता है और में इसकी बडी ही जरूरत महसूस करती थी...... इसका एक अत्यन्त उज्जवल पक्ष यह भी है कि अब मुझ अनगिनत खुदाओं के बजाये एक और केवल एक खुदा की उपासना करनी होगी। यह रमज़ान का महीना है। मुसलमानों का अत्यन्त पवित्र महीना और मैं खुश हूँ कि इस अत्यन्त पवित्र महीने में अपनी आस्थाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर रही हूँ तथा समझ-बूझ और होश के साथ एलान करती हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई पूज्य नहीं और मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के रसूल (दूत) हैं। अतीत में मेरा कोई अक़ीदा नहीं था। मूर्ति पूजा से बददिल होकर मैंने नास्तिकता अपना ली थी, लेकिन अब मैं एलान करती हूँ कि मैं एक अल्लाह की उपासक बनकर रहूँगी और धर्म और समुदाय के भेदभव के बगैर उसके सभी बन्दों से मुहब्बत करती रहूँगी ।
बाद में एक टेलीवीज़न इंटरव्यू में इन्होंने स्पष्ट किया, ‘‘मैंने किसी दबाव में आकर इस्लाम कत्रबूल नहीं किया है, यह मेरा स्वतंत्र फैसला है और मैं इस पर किसी आलोचना की कोई परवाह नहीं करती। मैंने फौरी तौर पर घर से बुतों और मूर्तियों को हटा दिया है और ऐसा महसूस करती हूं जैसे मुझे नया जन्म मिला है।‘‘
‘‘टाइम्ज़ आफ इण्डिया’’ को इंटरव्यू देते हुए 15 दिसम्बर 1999 ई. को डाक्टर सुरैया कमला ने कहा, ‘‘इस्लामी शिक्षाओं में बुरक़े ने मुझे बहुत प्रभावित किया अर्थात वह लिबास जो मुसलमान औरतें आमतौर पर पहनती हैं। हकीकत यह है कि बुरका बडा ही जबरदस्त लिबास और असाधारण चीज़ है। यह औरत को मर्द की चुभती हुई नज़रों से सुरक्षित रखता है और एक खास किस्म की सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।’’ उन्होंने और व्याख्या की, ‘‘आपको मेरी यह बात बडी अजीब लगेगी कि मैं नाम-निहाद आज़ादी से तंग आ गई हूँ। मुझे औरतों के नंगे मुह, आज़ाद चलत-फिरत तनिक भी पसन्द नहीं। मैं चाहती हूँ कि कोई मर्द मेरी ओर घूर कर न देखे। इसी लिए यह सुनकर आपको आश्चय्र होगा कि मैं पिछले चैबीस वर्षों से समय-समय पर बुरका औढ रही हूँ, शापिंग के लिए जाते हुए, सांस्कृतिक समारोहों में भाग लेते हुए, यहाँ तक कि विदेशों की यात्राओं में मैं अक्सर बुरका पहन लिया करती थी और एक खास किस्म की सुरक्षा की भावना से आनन्दित होती थी। मैंने देखा कि पर्देदार औरतों का आदर-सम्मान किया जाता है और कोई उन्हें अकारण परेशान नहीं करता।’’
डाक्टर सुरैया ने आगे कहा, ‘‘इस्लाम ने औरतों को विभिन्न पहलुओं से बहुत-सी आज़ादियाँ दे रखी हैं, बल्कि जहाँ तक बराबरी की बात है इतिहास के किसी युग में दुनिया के किसी समाज ने मर्द और औरत की बराबरी का वह एहतिमाम नहीं किया जो इस्लाम ने किया है। इसको मर्दों के बराबर अधिकारों से नवाज़ा गया है। माँ, बहन, बीवी और बेटी अर्थात इसका हर रिश्ता गरिमापूर्झा औ सम्माननीय है। इसको बाप, पति और बेटों की जायदाद में भागीदार बनाया गया है और घर में वह पति की प्रतिनिधि और कार्यवाहिका है। जहाँ तक पति के आज्ञापालन का बात है यह घर की व्यवस्था को ठीक रखते के लिए आवश्यक है और मैं इसको न गुलामी समझती हुँ और स्वतंत्रताओं की अपेक्षाओं का उल्लंघन समझती हुँ। इस प्रकार के आज्ञापालन और अनुपालन के बगैर तो किसी भी विभग की व्यवस्था शेष नही रह सकती और इस्लाम तो है ही सम्पूर्ण अनुपालन और सिर झुकाने का नाम, अल्लाह के सामने विशुद्ध बन्दगी का नाम। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) की सच्ची पैरवी का नाम, यही गुलामी तो सच्ची आजादी की गारंटी देती है, वरना इन्सान तो जानवर बन जाए और जहाँ चाहे, जिस खेती में चाहै मुँह मारता फिरे। अतः इस्लाम और केवल इस्लाम औरत की गरिमा, स्थान और श्रेणी का लिहाज़ करता है। हिन्दू धर्म में ऐसी कोई सुविधा दूर-दूर तक नज़र नहीं आती।
डाक्टर सुरैया कमला को इस्लाम कबूल करने के लिए 27 वर्ष तक इन्तिज़ार करना पडा। वह सत्तर के दशक में इस्लाम से प्रभावित हुईं और इस सम्बन्ध में अपने पति से वार्ता करती रहीं जिन्होंने जवाब में एतिराज़ या मुखालफत का अन्दाज़ नहीं अपनाया, बल्कि सुझाव दिया कि किसी नतीजे पर पहुँचने से पहले उन्हें इस्लाम के बारे में विस्तृत और गहन अध्ययन करना चाहिए। उनके तीनों बेटों का रवैया भी सकारात्मक रहा। इसी लिए जब उनकी माँ ने इस्लाम क़बूल करने का एलान किया तो तीनों बेटे कोचीन पहुँच गए, ताकि सम्भावित विरोध का मिलकर मुकाबला किया जा सके। तीनों बेटों की प्रतिक्रिया थी, ‘‘हमें अपनी माँ के फैसल से र्कोइ तमभेद नहीं। वह हमारी माँ है, चाहे वे हिन्दू हो, ईसाई हों, या मुसलमान, हम हर हाल में उनका साथ देंगे और उनके सम्मान में कोई कमी नहीं आने देंगे। ‘‘ बेटों के आज्ञापालन का उल्लेख करते हुए डाक्टर सुरैया ने बताया, ‘‘मेरे बेटों ने कह दिया है कि अगर आप खुश हैं तो हम भी इस्लाम कबूल करने पर तैयार हैं।‘‘
इस्लाम क़बूल करने के बाद कटटर-पंथी हिन्दुओं की ओर से धमकियों का सिलसिला शुरू हो गया। पत्रों में और टेलिफोन पर गालियाँ दी जातीं। श्रीमती के बेटे एम. डी फलाइड ने बताया, ‘‘हमने इस बारें में कई फोन सुने हैं, एक व्यक्ति ने धमकी दी, ‘‘चैबीस घंटे के अन्दर इसको कत्ल कर दूँगा।‘‘ लेकिन डाक्टर सुरैया जवाब में खामोश थी। ‘‘मैंने सभी मामले अल्लाह पर छोड दिए हैं, वही हमारी सुरक्षा करने वाला है।’’
उन्हें दुनिया भर के मुसलमानों की ओर से बधाई सन्देश प्राप्त होते रहे और वे बड़ी सच्चाई, मुहब्बत और गरमजोशी से उन्हें अपने समर्थन का यकीन दिलाते रहे। इससे मेरे इस विश्वास को ताक़त मिली है कि इस्लाम मुहब्बत औ इख़्लास का मज़हब है। मेरी इच्छा है कि बहुत जल्द इस्लाम के केन्द्र पवित्र शहर मक्का और मदीना की यात्रा करूँ और वहाँ की पवित्र मिटटी को चूमूँ। अपने बारे में उनकी कविताओं, कहानियों और विभिन्न इंटरव्यूज से पता चलता है कि उन्होंने इस्लाम क़बूल करने का निर्णय अचानक नहीं किया, जैसा कि ऊपर इशरा किया जा चुका है। करीब 28 वर्ष पूर्व इस्लाम धर्म के प्रति उनकी रूचि का आरम्भ उस समय हुआ जब उन्होंने दो यतीम मुस्लिम बच्चों.... इम्तियाज और इरशाद को लेपालक बना लिया । उन्होंने इन बच्चों को हिन्दू की हैसियत से पालन-पोषण करने के बजाये मुसलमान के रूप में प्रशिक्षित करने का फैसला किया। उनके लिए इस्लामी शिक्षा की व्यवस्था की और खुद भी इस्लाम और इस्लाम के इतिहास के बारे में अध्ययन आरम्भ कर दिया और फिर गम्भीरतापूर्वक और गहराई के साथ अपनी जानकारी में वृद्धि करती चली गईं। इस मकसद के लिए उन्होंने मुस्लिम परिवारों से सम्बन्ध बढा लिए। जिससे इस्लाम के बारें में उनकी एकाग्रता बढती गई। इसका उल्लेख उन्होंने विद्वान पति मधुवादास से किया, वे धर्म से विरक्त और निर्पेक्ष थे। उन्होंने सुझाव दिया कि इस्लाम के बारे में अधिक से अधिक अध्ययन करें और मन में पैदा होने वाली छोटी-से-छोटी आशंकाओं का जवाब हासिल करें। इसलिए जब उन्हें पूर्णतः संतुष्टि हो गई, मन सन्तुष्ट हो गया तो उन्होंने इस्लाम क़बूल करने का एलान कर दिया।
एक इंटरव्यू में ‘‘खलीज टाइम्ज‘‘ ने उनसे पूछा कि इस्लाम कबूल करने पर उनके जानने वालों और वर्तमान लेखकों की क्या प्रतिक्रिया थी, तो उन्होंने बताया, बहुत ही कम लोगों ने विरोध किया। बस कुछेक लोगों ने बुरा माना और मुझे उनकी कोई परवाह नहीं। धमकियाँ देनेवालों के बारे में कहा, ‘‘मैं तनिक भी उनसे भयभीत न हुई स्थानीय पुलिस के अधिकारियों ने मुझे गार्ड की पेशकश की। लेकिन मैंने उन्हें बता दिया है कि मुझे ऐसे किसी इन्तिज़ाम की ज़रूरत हीं। मुझे कूवल अल्लाह की हस्ती पर भरोसा है, वहीं मेरी सुरक्षा करेगा।‘‘ इसलिए यह बात ईमान को बढानेवाली है कि वे अपने ही घर में निवास करती रहीं और उन्होंने मामूली से सुरक्षा प्रबन्ध भी नहीं किए।
‘‘खलीज टाइम्ज़’’ ही से बातें करते हुऐ उन्होंने कहा, ‘‘मैंने अब बाक़ायदा पर्दा अपना लिया है और ऐसा लगता है कि जैसे बुरका बुलेटप्रूफ जैकेट है जिसमें और मर्दों की हवसनाक नज़रों से भी सुरक्षित रहती है और उनकी शरारतों से भी। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस्लाम ने नहीं, बल्कि सामाजिक अन्यायों ने औरतों के अधिकार छीन लिए हैं। इस्लाम तो औरतों के अधिकारों का सबसे बडा रक्षक है।‘‘ उन्होंने बडे विश्वास के साथ कहा, ‘‘इस्लाम मेरे लिए दुनिया की सबसे कीमती पूँजी है। यह मुझे जानसे बढकर प्रिय है और इसके लिए बडी से बडी कुरबानी दी जा सकती है।’’
जहाँ तक इस्लामी शिक्षाओं पर अमल की बात है। डाक्टर सुरैया कमला ने कहा, ‘‘मुझे हर अच्छे मुसलमान की तरह इस्लाम की एक-एक शिक्षा से गहरी मुहब्बत है। मैंने इसे दैनिक जीवन में व्यवहारिक रूप से अपना लिया है और धर्म के मुकाबले में दौलत मेरे नज़दीक बेमानी चीज़ है।’’ अपनी शायरी के हवाले से उन्होंने बताया, ‘‘मैं आगे केवल खुदा की तारीफ पर आधारित कविताएँ लिखूँगी। अल्लाह ने चाहा तो ईश्वर की प्रशंसा पर आधरित कविताओं की एक किताब बहुत जल्द सामने आ जाएगी।’’
इस्लाम क़बूल करने के बाद डाक्टर सुरैया कमला ने बहुत से समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और इलेक्ट्रानिक मीडिया को इंटरव्यूज़ दिए। हर इंटरव्यू में उन्होंने इस इरादे का इज़हार किया कि वे दुनिया पर इस्लामी शिक्षाओं की सच्चाई को उजागर करेंगी। ‘खलीज टाइम्ज‘ से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘में इस्लाम का परिच नई सदी के एक जिन्दा और सच्चे धर्म की हैसियत से कराना चाहती हूँ। जिसकी बुनियादें बुद्धि, साइंस और सच्चाइयों पर आधारित हैं। मेरा इरादा है कि अब मैं शायरी को अल्लाह के गुणगान के लिए अर्पित कर दूँ और कुरआन के बारें में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करलूँ और उन इस्लामी शिक्षाओं से अवगत हो जाऊँ जो दैनिक जीवन में रहनुमाई का सबब बनती हैं। मेरे नज़दीक इस्लाम की रूह यह है कि एक सच्चे मुसलमान को दूसरों की अधिक से अधिक सेवा करनी चाहिए। अल्लाह का शक्र है कि में पहले से भी इस पर कार्यरत हूँ और आगे भी यही तरीक़ा अपनाउँगी। अतः इस सम्बन्ध में मैं खुदा के बन्दों तक इस्लाम की बरकतें पहुँचाने का इरादा रखती हूँ। मैं जानती हूँ कि इस्लाम की नेमत मिल जाने के बाद मैं खुशी और इत्मीनान के जिस एहसास से परिचित हुई हूँ उसे सारी दुनिया तक पहुँचा दूँ। सच्चाई यह है कि इस्लाम क़बूल करने के बाद मुझे जो इत्मीनान और सुकून हासिल हुआ है और खुशी की जिस कैफियत से मैं अवगत हुई हूँ, उसे बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। इसके साथ ही मुझे सुरक्षा का एहसास भी प्राप्त हुआ है। मैं बडी उम्र की एक औरत हूँ और सच्ची बात यह है कि इस्लाम कुबूल करने से पहले जीवन भर बेखौफी का ऐसा खास अन्दाज़ मेरे तजुर्बे में नहीं आया। सुकून, इत्मीनान, खुशी और बेखौफी की यह नेमत धन-दौलत से हरगिज नहीं मिल सकती। इसी लिए दौलत मेरी नज़रों में तुच्छ हो गई है।‘‘
खुशी और इत्मीनान के इस एहसास को उन लाखों बधाई सन्देशों ने और अधिक बढा दिया जो उन्हें दुनिया भर से मिलते रहे, खलीज टाइम्ज़ के रिपोर्टर के मुताबिक उनके टेलिफोन की घंटी दिन भर बजती रतही है। इस्लाम के मानने वाले उनकी खुशियों में जी भरके शरीक होते रहे।
साभारः
‘‘हमें खुदा कैसे मिला’’ मधुर संदेश संगम, दिल्ली-25, पृष्ठ 94 से 100 तक
(80 नव-मुल्लिम महिलाओं की दास्तान की यह पुस्तक ब्लाग islaminhindi.blogspot.com पर पीडीफ में उपलब्ध)
दूसरे कामेंटसः
कमला सुरैया के जन्म की तारीख भी 31(मार्च)थी और उनका निधन भी 31(मई)2009 तारीख को हुआ.
इस्लाम धर्म स्वीकार करने के पीछे उन्होंने अपना इरादा और फ़ैसला कभी वास्तविक तौर पर ज़ाहिर नहीं किया.
उपरोक्त लेख के लेखक को भी वास्तविक तौर पर इस लेख से पता चल जायेगा क्यूं कमला जी इस्लाम में गईं,
जन्म की तारीख और निधन की तारीख लिखकर हमें कितनी खुशी दी इस लेखक ने,, ऐसा केवल मुहम्मद सल्ल. के साथ हुआ कि जन्म और निधन की तारीख एक हों, अल्लाह जन्नत नसीब करे इस बेबाक लेखिका को,आमीन--- मुहम्मद उमर कैरानवी
islaminhindi.blogspot.com
0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0
स्वगींय श्रीमती डाक्टर कमला सुरैया(केरल, भारत) (पारिवारिक नाम डाक्टर कमलादास) उपन्यासकार हैं, कवयित्री हैं और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध् लेखिका और शोधकर्ता हैं। उन्होंने 12 दिसम्बर 1999 ई. को इस्लाम स्वीकार किया तो भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के धार्मिक और शैक्षिक क्षेत्रों में तहलका मच गया। नीचे उनके इस्लाम क़बूल करने की घटना ब्यान की जा रही है। यह लेख कई अलग-अलग लेखों की सहायता से तैयार किया गया है।
........
डाक्टर कमला सुरैया 1934 ई. में दक्षिणी भारत के केरल राज्य के एक इलाक़े पन्ना पूरकलम (जनपद थ्रेसर) में पैदा हुईं। उनका सम्बन्ध नायर जाति के एक अमीर हिन्दू घराने से है। उनकी माँ निलापत बिलामनी मलयालम भाषा की कवयित्री थीं, जबकि पिता बी. एम. नायर प्रसिद्ध पत्रकार थे और एक ही समय में दो पत्रिकाओं के सम्पादक थे। उनके पति स्वर्गीय मध्वादास इण्टरनेशनल मानीटरी फण्ड (IMF) के सीनियर कंसलटेंट थे।
खुद डाक्टर कमला सुरैया एक समय तक अंग्रज़ी की अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका इलस्ट्रेटेड वीकली आफ़ इण्डिया की सम्पादक कमेटी में शामिल रहीं। वे केरल की चिल्डेªªन फिल्म सोसाइटी की अध्यक्ष थीं। केरल के फारेस्ट्री बोर्ड की चेयर पर्सन थीं और मासिक पत्रिका ‘पोयट‘ की ओरिऐंट एडीटर थीं।
डाक्टर सुरैया एक ही समय मलयालम और अंग्रेज़ी भाषाओं में लिखती हैं। वे उपन्यासकार भी हैं, कहानीकार भी और कवयित्री भी। इस प्रकार विभिन्न हवालों से मलयालम में उनकी बीस से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं और बहुत पसन्द की गई हैं। इनके नावल 'Entekatha' का पन्द्रह विदेशी भाषाओं में अनूवाद हो चुका है। इसी प्रकार अंग्रज़ी में उनकी पाँच किताबें हैं और बडी लोकप्रिय हुई हैं। 1964 ई. में इन्हें ‘एशियन पोएटरी प्राइज़‘ दिया गया। 1965 ई. में इन्हें केंट अवार्ड, एशियन वल्र्ड प्राइज़ और एकेडमी अवार्ड दिए गए। 1967 ई. में इन्हें 'Vayalar' अवार्ड मिला। जबकि 1969 ई. में उनके कथा-लेखन पर उन्हें केरल साहित्य एकेडमी अवार्ड का सम्मान मिला। कई देशी और विदेशी यूनीवर्सिटियों ने इन्हें डाक्ट्रेट की मानद डिग्रियाँ प्रदान की हैं।
इन आसाधरण शैक्षिक, साहित्यिक तथा लेखन और शोध सम्बन्धी योग्यताओं के साथ इस प्रसिद्ध महिला ने 12 दिसम्बर 1999 ई. को केरल के शहर कोचीन में एक शैक्षिक एवं साहित्यिक समारोह को सम्बोधित करते हुए उपमहाद्वीप के राजनीतिक, धार्मिक और शैक्षिक क्षेत्रों में इस रहस्योद्घाटन से सनसनी फैला दीः ‘‘दुनिया सुन ले कि मैंने इस्लाम क़बूल कर लिया है, इस्लाम जो मुहब्बत, अमन और शान्ति का दीन हैं, इस्लाम जो सम्पूर्ण जीवन व्यवस्था है, और मैंने यह फैसला भावुकता या सामयिक आधारों पर नहीं किया है, इसके लिए मैंने एक अवधि तक बडी गम्भीरता और ध्यानपूर्वक गहन अध्ययन किया है और मैं अंत में इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि अन्य असंख्य खूबियों के अतिरिक्त इस्लाम औरत को सुरक्षा का एहसास प्रदान करता है और में इसकी बडी ही जरूरत महसूस करती थी...... इसका एक अत्यन्त उज्जवल पक्ष यह भी है कि अब मुझ अनगिनत खुदाओं के बजाये एक और केवल एक खुदा की उपासना करनी होगी। यह रमज़ान का महीना है। मुसलमानों का अत्यन्त पवित्र महीना और मैं खुश हूँ कि इस अत्यन्त पवित्र महीने में अपनी आस्थाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर रही हूँ तथा समझ-बूझ और होश के साथ एलान करती हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई पूज्य नहीं और मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के रसूल (दूत) हैं। अतीत में मेरा कोई अक़ीदा नहीं था। मूर्ति पूजा से बददिल होकर मैंने नास्तिकता अपना ली थी, लेकिन अब मैं एलान करती हूँ कि मैं एक अल्लाह की उपासक बनकर रहूँगी और धर्म और समुदाय के भेदभव के बगैर उसके सभी बन्दों से मुहब्बत करती रहूँगी ।
बाद में एक टेलीवीज़न इंटरव्यू में इन्होंने स्पष्ट किया, ‘‘मैंने किसी दबाव में आकर इस्लाम कत्रबूल नहीं किया है, यह मेरा स्वतंत्र फैसला है और मैं इस पर किसी आलोचना की कोई परवाह नहीं करती। मैंने फौरी तौर पर घर से बुतों और मूर्तियों को हटा दिया है और ऐसा महसूस करती हूं जैसे मुझे नया जन्म मिला है।‘‘
‘‘टाइम्ज़ आफ इण्डिया’’ को इंटरव्यू देते हुए 15 दिसम्बर 1999 ई. को डाक्टर सुरैया कमला ने कहा, ‘‘इस्लामी शिक्षाओं में बुरक़े ने मुझे बहुत प्रभावित किया अर्थात वह लिबास जो मुसलमान औरतें आमतौर पर पहनती हैं। हकीकत यह है कि बुरका बडा ही जबरदस्त लिबास और असाधारण चीज़ है। यह औरत को मर्द की चुभती हुई नज़रों से सुरक्षित रखता है और एक खास किस्म की सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।’’ उन्होंने और व्याख्या की, ‘‘आपको मेरी यह बात बडी अजीब लगेगी कि मैं नाम-निहाद आज़ादी से तंग आ गई हूँ। मुझे औरतों के नंगे मुह, आज़ाद चलत-फिरत तनिक भी पसन्द नहीं। मैं चाहती हूँ कि कोई मर्द मेरी ओर घूर कर न देखे। इसी लिए यह सुनकर आपको आश्चय्र होगा कि मैं पिछले चैबीस वर्षों से समय-समय पर बुरका औढ रही हूँ, शापिंग के लिए जाते हुए, सांस्कृतिक समारोहों में भाग लेते हुए, यहाँ तक कि विदेशों की यात्राओं में मैं अक्सर बुरका पहन लिया करती थी और एक खास किस्म की सुरक्षा की भावना से आनन्दित होती थी। मैंने देखा कि पर्देदार औरतों का आदर-सम्मान किया जाता है और कोई उन्हें अकारण परेशान नहीं करता।’’
डाक्टर सुरैया ने आगे कहा, ‘‘इस्लाम ने औरतों को विभिन्न पहलुओं से बहुत-सी आज़ादियाँ दे रखी हैं, बल्कि जहाँ तक बराबरी की बात है इतिहास के किसी युग में दुनिया के किसी समाज ने मर्द और औरत की बराबरी का वह एहतिमाम नहीं किया जो इस्लाम ने किया है। इसको मर्दों के बराबर अधिकारों से नवाज़ा गया है। माँ, बहन, बीवी और बेटी अर्थात इसका हर रिश्ता गरिमापूर्झा औ सम्माननीय है। इसको बाप, पति और बेटों की जायदाद में भागीदार बनाया गया है और घर में वह पति की प्रतिनिधि और कार्यवाहिका है। जहाँ तक पति के आज्ञापालन का बात है यह घर की व्यवस्था को ठीक रखते के लिए आवश्यक है और मैं इसको न गुलामी समझती हुँ और स्वतंत्रताओं की अपेक्षाओं का उल्लंघन समझती हुँ। इस प्रकार के आज्ञापालन और अनुपालन के बगैर तो किसी भी विभग की व्यवस्था शेष नही रह सकती और इस्लाम तो है ही सम्पूर्ण अनुपालन और सिर झुकाने का नाम, अल्लाह के सामने विशुद्ध बन्दगी का नाम। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) की सच्ची पैरवी का नाम, यही गुलामी तो सच्ची आजादी की गारंटी देती है, वरना इन्सान तो जानवर बन जाए और जहाँ चाहे, जिस खेती में चाहै मुँह मारता फिरे। अतः इस्लाम और केवल इस्लाम औरत की गरिमा, स्थान और श्रेणी का लिहाज़ करता है। हिन्दू धर्म में ऐसी कोई सुविधा दूर-दूर तक नज़र नहीं आती।
डाक्टर सुरैया कमला को इस्लाम कबूल करने के लिए 27 वर्ष तक इन्तिज़ार करना पडा। वह सत्तर के दशक में इस्लाम से प्रभावित हुईं और इस सम्बन्ध में अपने पति से वार्ता करती रहीं जिन्होंने जवाब में एतिराज़ या मुखालफत का अन्दाज़ नहीं अपनाया, बल्कि सुझाव दिया कि किसी नतीजे पर पहुँचने से पहले उन्हें इस्लाम के बारे में विस्तृत और गहन अध्ययन करना चाहिए। उनके तीनों बेटों का रवैया भी सकारात्मक रहा। इसी लिए जब उनकी माँ ने इस्लाम क़बूल करने का एलान किया तो तीनों बेटे कोचीन पहुँच गए, ताकि सम्भावित विरोध का मिलकर मुकाबला किया जा सके। तीनों बेटों की प्रतिक्रिया थी, ‘‘हमें अपनी माँ के फैसल से र्कोइ तमभेद नहीं। वह हमारी माँ है, चाहे वे हिन्दू हो, ईसाई हों, या मुसलमान, हम हर हाल में उनका साथ देंगे और उनके सम्मान में कोई कमी नहीं आने देंगे। ‘‘ बेटों के आज्ञापालन का उल्लेख करते हुए डाक्टर सुरैया ने बताया, ‘‘मेरे बेटों ने कह दिया है कि अगर आप खुश हैं तो हम भी इस्लाम कबूल करने पर तैयार हैं।‘‘
इस्लाम क़बूल करने के बाद कटटर-पंथी हिन्दुओं की ओर से धमकियों का सिलसिला शुरू हो गया। पत्रों में और टेलिफोन पर गालियाँ दी जातीं। श्रीमती के बेटे एम. डी फलाइड ने बताया, ‘‘हमने इस बारें में कई फोन सुने हैं, एक व्यक्ति ने धमकी दी, ‘‘चैबीस घंटे के अन्दर इसको कत्ल कर दूँगा।‘‘ लेकिन डाक्टर सुरैया जवाब में खामोश थी। ‘‘मैंने सभी मामले अल्लाह पर छोड दिए हैं, वही हमारी सुरक्षा करने वाला है।’’
उन्हें दुनिया भर के मुसलमानों की ओर से बधाई सन्देश प्राप्त होते रहे और वे बड़ी सच्चाई, मुहब्बत और गरमजोशी से उन्हें अपने समर्थन का यकीन दिलाते रहे। इससे मेरे इस विश्वास को ताक़त मिली है कि इस्लाम मुहब्बत औ इख़्लास का मज़हब है। मेरी इच्छा है कि बहुत जल्द इस्लाम के केन्द्र पवित्र शहर मक्का और मदीना की यात्रा करूँ और वहाँ की पवित्र मिटटी को चूमूँ। अपने बारे में उनकी कविताओं, कहानियों और विभिन्न इंटरव्यूज से पता चलता है कि उन्होंने इस्लाम क़बूल करने का निर्णय अचानक नहीं किया, जैसा कि ऊपर इशरा किया जा चुका है। करीब 28 वर्ष पूर्व इस्लाम धर्म के प्रति उनकी रूचि का आरम्भ उस समय हुआ जब उन्होंने दो यतीम मुस्लिम बच्चों.... इम्तियाज और इरशाद को लेपालक बना लिया । उन्होंने इन बच्चों को हिन्दू की हैसियत से पालन-पोषण करने के बजाये मुसलमान के रूप में प्रशिक्षित करने का फैसला किया। उनके लिए इस्लामी शिक्षा की व्यवस्था की और खुद भी इस्लाम और इस्लाम के इतिहास के बारे में अध्ययन आरम्भ कर दिया और फिर गम्भीरतापूर्वक और गहराई के साथ अपनी जानकारी में वृद्धि करती चली गईं। इस मकसद के लिए उन्होंने मुस्लिम परिवारों से सम्बन्ध बढा लिए। जिससे इस्लाम के बारें में उनकी एकाग्रता बढती गई। इसका उल्लेख उन्होंने विद्वान पति मधुवादास से किया, वे धर्म से विरक्त और निर्पेक्ष थे। उन्होंने सुझाव दिया कि इस्लाम के बारे में अधिक से अधिक अध्ययन करें और मन में पैदा होने वाली छोटी-से-छोटी आशंकाओं का जवाब हासिल करें। इसलिए जब उन्हें पूर्णतः संतुष्टि हो गई, मन सन्तुष्ट हो गया तो उन्होंने इस्लाम क़बूल करने का एलान कर दिया।
एक इंटरव्यू में ‘‘खलीज टाइम्ज‘‘ ने उनसे पूछा कि इस्लाम कबूल करने पर उनके जानने वालों और वर्तमान लेखकों की क्या प्रतिक्रिया थी, तो उन्होंने बताया, बहुत ही कम लोगों ने विरोध किया। बस कुछेक लोगों ने बुरा माना और मुझे उनकी कोई परवाह नहीं। धमकियाँ देनेवालों के बारे में कहा, ‘‘मैं तनिक भी उनसे भयभीत न हुई स्थानीय पुलिस के अधिकारियों ने मुझे गार्ड की पेशकश की। लेकिन मैंने उन्हें बता दिया है कि मुझे ऐसे किसी इन्तिज़ाम की ज़रूरत हीं। मुझे कूवल अल्लाह की हस्ती पर भरोसा है, वहीं मेरी सुरक्षा करेगा।‘‘ इसलिए यह बात ईमान को बढानेवाली है कि वे अपने ही घर में निवास करती रहीं और उन्होंने मामूली से सुरक्षा प्रबन्ध भी नहीं किए।
‘‘खलीज टाइम्ज़’’ ही से बातें करते हुऐ उन्होंने कहा, ‘‘मैंने अब बाक़ायदा पर्दा अपना लिया है और ऐसा लगता है कि जैसे बुरका बुलेटप्रूफ जैकेट है जिसमें और मर्दों की हवसनाक नज़रों से भी सुरक्षित रहती है और उनकी शरारतों से भी। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस्लाम ने नहीं, बल्कि सामाजिक अन्यायों ने औरतों के अधिकार छीन लिए हैं। इस्लाम तो औरतों के अधिकारों का सबसे बडा रक्षक है।‘‘ उन्होंने बडे विश्वास के साथ कहा, ‘‘इस्लाम मेरे लिए दुनिया की सबसे कीमती पूँजी है। यह मुझे जानसे बढकर प्रिय है और इसके लिए बडी से बडी कुरबानी दी जा सकती है।’’
जहाँ तक इस्लामी शिक्षाओं पर अमल की बात है। डाक्टर सुरैया कमला ने कहा, ‘‘मुझे हर अच्छे मुसलमान की तरह इस्लाम की एक-एक शिक्षा से गहरी मुहब्बत है। मैंने इसे दैनिक जीवन में व्यवहारिक रूप से अपना लिया है और धर्म के मुकाबले में दौलत मेरे नज़दीक बेमानी चीज़ है।’’ अपनी शायरी के हवाले से उन्होंने बताया, ‘‘मैं आगे केवल खुदा की तारीफ पर आधारित कविताएँ लिखूँगी। अल्लाह ने चाहा तो ईश्वर की प्रशंसा पर आधरित कविताओं की एक किताब बहुत जल्द सामने आ जाएगी।’’
इस्लाम क़बूल करने के बाद डाक्टर सुरैया कमला ने बहुत से समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और इलेक्ट्रानिक मीडिया को इंटरव्यूज़ दिए। हर इंटरव्यू में उन्होंने इस इरादे का इज़हार किया कि वे दुनिया पर इस्लामी शिक्षाओं की सच्चाई को उजागर करेंगी। ‘खलीज टाइम्ज‘ से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘में इस्लाम का परिच नई सदी के एक जिन्दा और सच्चे धर्म की हैसियत से कराना चाहती हूँ। जिसकी बुनियादें बुद्धि, साइंस और सच्चाइयों पर आधारित हैं। मेरा इरादा है कि अब मैं शायरी को अल्लाह के गुणगान के लिए अर्पित कर दूँ और कुरआन के बारें में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करलूँ और उन इस्लामी शिक्षाओं से अवगत हो जाऊँ जो दैनिक जीवन में रहनुमाई का सबब बनती हैं। मेरे नज़दीक इस्लाम की रूह यह है कि एक सच्चे मुसलमान को दूसरों की अधिक से अधिक सेवा करनी चाहिए। अल्लाह का शक्र है कि में पहले से भी इस पर कार्यरत हूँ और आगे भी यही तरीक़ा अपनाउँगी। अतः इस सम्बन्ध में मैं खुदा के बन्दों तक इस्लाम की बरकतें पहुँचाने का इरादा रखती हूँ। मैं जानती हूँ कि इस्लाम की नेमत मिल जाने के बाद मैं खुशी और इत्मीनान के जिस एहसास से परिचित हुई हूँ उसे सारी दुनिया तक पहुँचा दूँ। सच्चाई यह है कि इस्लाम क़बूल करने के बाद मुझे जो इत्मीनान और सुकून हासिल हुआ है और खुशी की जिस कैफियत से मैं अवगत हुई हूँ, उसे बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। इसके साथ ही मुझे सुरक्षा का एहसास भी प्राप्त हुआ है। मैं बडी उम्र की एक औरत हूँ और सच्ची बात यह है कि इस्लाम कुबूल करने से पहले जीवन भर बेखौफी का ऐसा खास अन्दाज़ मेरे तजुर्बे में नहीं आया। सुकून, इत्मीनान, खुशी और बेखौफी की यह नेमत धन-दौलत से हरगिज नहीं मिल सकती। इसी लिए दौलत मेरी नज़रों में तुच्छ हो गई है।‘‘
खुशी और इत्मीनान के इस एहसास को उन लाखों बधाई सन्देशों ने और अधिक बढा दिया जो उन्हें दुनिया भर से मिलते रहे, खलीज टाइम्ज़ के रिपोर्टर के मुताबिक उनके टेलिफोन की घंटी दिन भर बजती रतही है। इस्लाम के मानने वाले उनकी खुशियों में जी भरके शरीक होते रहे।
साभारः
‘‘हमें खुदा कैसे मिला’’ मधुर संदेश संगम, दिल्ली-25, पृष्ठ 94 से 100 तक
(80 नव-मुल्लिम महिलाओं की दास्तान की यह पुस्तक ब्लाग islaminhindi.blogspot.com पर पीडीफ में उपलब्ध)
Wednesday, April 29, 2009
औरंगज़ेब ने मन्दिर तोडा तो मस्जिद भी तोडी लेकिन क्यूं?
तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।।
---
पुस्तक एवं लेखक:‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय, भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा, राज्यसभा के सदस्य, इलाहाबाद नगरपालिका के चेयरमैन एवं इतिहासकार
---
जब में इलाहाबाद नगरपालिका का चेयरमैन था (1948 ई. से 1953 ई. तक) तो मेरे सामने दाखिल-खारिज का एक मामला लाया गया। यह मामला सोमेश्वर नाथ महादेव मन्दिर से संबंधित जायदाद के बारे में था। मन्दिर के महंत की मृत्यु के बाद उस जायदाद के दो दावेदार खड़े हो गए थे। एक दावेदार ने कुछ दस्तावेज़ दाखिल किये जो उसके खानदान में बहुत दिनों से चले आ रहे थे। इन दस्तावेज़ों में शहंशाह औरंगज़ेब के फ़रमान भी थे। औरंगज़ेब ने इस मन्दिर को जागीर और नक़द अनुदान दिया था। मैंने सोचा कि ये फ़रमान जाली होंगे। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हो सकता है कि औरंगज़ेब जो मन्दिरों को तोडने के लिए प्रसिद्ध है, वह एक मन्दिर को यह कह कर जागीर दे सकता हे यह जागीर पूजा और भोग के लिए दी जा रही है। आखि़र औरंगज़ेब कैस बुतपरस्ती के साथ अपने को शरीक कर सकता था। मुझे यक़ीन था कि ये दस्तावेज़ जाली हैं, परन्तु कोई निर्णय लेने से पहले मैंने डा. सर तेज बहादुर सप्रु से राय लेना उचित समझा। वे अरबी और फ़ारसी के अच्छे जानकार थे। मैंने दस्तावेज़ें उनके सामने पेश करके उनकी राय मालूम की तो उन्होंने दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के बाद कहा कि औरंगजे़ब के ये फ़रमान असली और वास्तविक हैं। इसके बाद उन्होंने अपने मुन्शी से बनारस के जंगमबाडी शिव मन्दिर की फ़ाइल लाने को कहा। यह मुक़दमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 साल से विचाराधीन था। जंगमबाड़ी मन्दिर के महंत के पास भी औरंगज़ेब के कई फ़रमान थे, जिनमें मन्दिर को जागीर दी गई थी। इन दस्तावेज़ों ने औरंगज़ेब की एक नई तस्वीर मेरे सामने पेश की, उससे मैं आश्चर्य में पड़ गया। डाक्टर सप्रू की सलाह पर मैंने भारत के पिभिन्न प्रमुख मन्दिरों के महंतो के पास पत्र भेजकर उनसे निवेदन किया कि यदि उनके पास औरंगज़ेब के कुछ फ़रमान हों जिनमें उन मन्दिरों को जागीरें दी गई हों तो वे कृपा करके उनकी फोटो-स्टेट कापियां मेरे पास भेज दें। अब मेरे सामने एक और आश्चर्य की बात आई। उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर, चित्रकूट के बालाजी मन्दिर, गौहाटी के उमानन्द मन्दिर, शत्रुन्जाई के जैन मन्दिर और उत्तर भारत में फैले हुए अन्य प्रमुख मन्दिरों एवं गुरूद्वारों से सम्बन्धित जागीरों के लिए औरंगज़ेब के फरमानों की नक़लें मुझे प्राप्त हुई। यह फ़रमान 1065 हि. से 1091 हि., अर्थात 1659 से 1685 ई. के बीच जारी किए गए थे। हालांकि हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के प्रति औरंगज़ेब के उदार रवैये की ये कुछ मिसालें हैं, फिर भी इनसे यह प्रमाण्ति हो जाता है कि इतिहासकारों ने उसके सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, वह पक्षपात पर आधारित है और इससे उसकी तस्वीर का एक ही रूख सामने लाया गया है। भारत एक विशाल देश है, जिसमें हज़ारों मन्दिर चारों ओर फैले हुए हैं। यदि सही ढ़ंग से खोजबीन की जाए तो मुझे विश्वास है कि और बहुत-से ऐसे उदाहरण मिल जाऐंगे जिनसे औरंगज़ेब का गै़र-मुस्लिमों के प्रति उदार व्यवहार का पता चलेगा। औरंगज़ेब के फरमानों की जांच-पड़ताल के सिलसिले में मेरा सम्पर्क श्री ज्ञानचंद और पटना म्यूजियम के भूतपूर्व क्यूरेटर डा. पी एल. गुप्ता से हुआ। ये महानुभाव भी औरंगज़ेब के विषय में ऐतिहासिक दृस्टि से अति महत्वपूर्ण रिसर्च कर रहे थे। मुझे खुशी हुई कि कुछ अन्य अनुसन्धानकर्ता भी सच्चाई को तलाश करने में व्यस्त हैं और काफ़ी बदनाम औरंगज़ेब की तस्वीर को साफ़ करने में अपना योगदान दे रहे हैं। औरंगज़ेब, जिसे पक्षपाती इतिहासकारों ने भारत में मुस्लिम हकूमत का प्रतीक मान रखा है। उसके बारें में वे क्या विचार रखते हैं इसके विषय में यहां तक कि ‘शिबली’ जैसे इतिहास गवेषी कवि को कहना पड़ाः
तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।।
औरंगज़ेब पर हिन्दू-दुश्मनी के आरोप के सम्बन्ध में जिस फरमान को बहुत उछाला गया है, वह ‘फ़रमाने-बनारस’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह फ़रमान बनारस के मुहल्ला गौरी के एक ब्राहमण परिवार से संबंधित है। 1905 ई. में इसे गोपी उपाघ्याय के नवासे मंगल पाण्डेय ने सिटि मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया था। एसे पहली बार ‘एसियाटिक- सोसाइटी’ बंगाल के जर्नल (पत्रिका) ने 1911 ई. में प्रकाशित किया था। फलस्वरूप रिसर्च करनेवालों का ध्यान इधर गया। तब से इतिहासकार प्रायः इसका हवाला देते आ रहे हैं और वे इसके आधार पर औरंगज़ेब पर आरोप लगाते हैं कि उसने हिन्दू मन्दिरों के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था, जबकि इस फ़रमान का वास्तविक महत्व उनकी निगाहों से आझल रह जाता है। यह लिखित फ़रमान औरंगज़ेब ने 15 जुमादुल-अव्वल 1065 हि. (10 मार्च 1659 ई.) को बनारस के स्थानिय अधिकारी के नाम भेजा था जो एक ब्राहम्ण की शिकायत के सिलसिले में जारी किया गया था। वह ब्राहमण एक मन्दिर का महंत था और कुछ लोग उसे परेशान कर रहे थे। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘अबुल हसन को हमारी शाही उदारता का क़ायल रहते हुए यह जानना चाहिए कि हमारी स्वाभाविक दयालुता और प्राकृतिक न्याय के अनुसार हमारा सारा अनथक संघर्ष और न्यायप्रिय इरादों का उद्देश्य जन-कल्याण को अढ़ावा देना है और प्रत्येक उच्च एवं निम्न वर्गों के हालात को बेहतर बनाना है। अपने पवित्र कानून के अनुसार हमने फैसला किया है कि प्राचीन मन्दिरों को तबाह और बरबाद नहीं किया जाय, बलबत्ता नए मन्दिर न बनए जाएँ। हमारे इस न्याय पर आधारित काल में हमारे प्रतिष्ठित एवं पवित्र दरबार में यह सूचना पहुंची है कि कुछ लोग बनारस शहर और उसके आस-पास के हिन्दू नागरिकों और मन्दिरों के ब्राहम्णों-पुरोहितों को परेशान कर रहे हैं तथा उनके मामलों में दख़ल दे रहे हैं, जबकि ये प्राचीन मन्दिर उन्हीं की देख-रेख में हैं। इसके अतिरिक्त वे चाहते हैं कि इन ब्राहम्णों को इनके पुराने पदों से हटा दें। यह दखलंदाज़ी इस समुदाय के लिए परेशानी का कारण है। इसलिए यह हमारा फ़रमान है कि हमारा शाही हुक्म पहुंचते ही तुम हिदायत जारी कर दो कि कोई भी व्यक्ति ग़ैर-कानूनी रूप से दखलंदाजी न करे और न उन स्थानों के ब्राहम्णों एवं अन्य हिन्दु नागरिकों को परेशान करे। ताकि पहले की तरह उनका क़ब्ज़ा बरक़रार रहे और पूरे मनोयोग से वे हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के लिए प्रार्थना करते रहें। इस हुक्म को तुरन्त लागू किया जाये।’’ इस फरमान से बिल्कुल स्पष्ट हैं कि औरंगज़ेब ने नए मन्दिरों के निर्माण के विरूद्ध कोई नया हुक्म जारी नहीं किया, बल्कि उसने केवल पहले से चली आ रही परम्परा का हवाला दिया और उस परम्परा की पाबन्दी पर ज़ोर दिया। पहले से मौजूद मन्दिरों को ध्वस्त करने का उसने कठोरता से विरोध किया। इस फ़रमान से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वह हिन्दू प्रजा को सुख-शान्ति से जीवन व्यतीत करने का अवसर देने का इच्छुक था। यह अपने जैसा केवल एक ही फरमान नहीं है। बनारस में ही एक और फरमान मिलता है, जिससे स्पष्ट होता है कि औरंगज़ेब वास्तव में चाहता था कि हिन्दू सुख-शान्ति के साथ जीवन व्यतीत कर सकें। यह फरमान इस प्रकार हैः ‘‘रामनगर (बनारस) के महाराजाधिराज राजा रामसिंह ने हमारे दरबार में अर्ज़ी पेश की हैं कि उनके पिता ने गंगा नदी के किनारे अपने धार्मिक गुरू भगवत गोसाईं के निवास के लिए एक मकान बनवाया था। अब कुछ लोग गोसाईं को परेशान कर रहे हैं। अतः यह शाही फ़रमान जारी किया जाता है कि इस फरमान के पहुंचते ही सभी वर्तमान एवं आने वाले अधिकारी इस बात का पूरा ध्यान रखें कि कोई भी व्यक्ति गोसाईं को परेशान एवं डरा-धमका न सके, और न उनके मामलें में हस्तक्षेप करे, ताकि वे पूरे मनोयोग के साथ हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए प्रार्थना करते रहें। इस फरमान पर तुरं अमल गिया जाए।’’ (तीरीख-17 बबी उस्सानी 1091 हिजरी) जंगमबाड़ी मठ के महंत के पास मौजूद कुछ फरमानों से पता चलता है कि औरंगज़ैब कभी यह सहन नहीं करता था कि उसकी प्रजा के अधिकार किसी प्रकार से भी छीने जाएँ, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान। वह अपराधियों के साथ सख़्ती से पेश आता था। इन फरमानों में एक जंगम लोंगों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) की ओर से एक मुसलमान नागरिक के दरबार में लाया गया, जिस पर शाही हुक्म दिया गया कि बनारस सूबा इलाहाबाद के अफ़सरों को सूचित किया जाता है कि पुराना बनारस के नागरिकों अर्जुनमल और जंगमियों ने शिकायत की है कि बनारस के एक नागरिक नज़ीर बेग ने क़स्बा बनारस में उनकी पांच हवेलियों पर क़ब्जा कर लिया है। उन्हें हुक्द दिया जाता है कि यदि शिकायत सच्ची पाई जाए और जायदा की मिल्कियत का अधिकार प्रमानिण हो जाए तो नज़ीर बेग को उन हवेलियों में दाखि़ल न होने दया जाए, ताकि जंगमियों को भविष्य में अपनी शिकायत दूर करवाने के लिएए हमारे दरबार में ने आना पडे। इस फ़रमान पर 11 शाबान, 13 जुलूस (1672 ई.) की तारीख़ दर्ज है। इसी मठ के पास मौजूद एक-दूसरे फ़रमान में जिस पर पहली नबीउल-अव्वल 1078 हि. की तारीख दर्ज़ है, यह उल्लेख है कि ज़मीन का क़ब्ज़ा जंगमियों को दया गया। फ़रमान में है- ‘‘परगना हवेली बनारस के सभी वर्तमान और भावी जागीरदारों एवं करोडियों को सूचित किया जाता है कि शहंशाह के हुक्म से 178 बीघा ज़मीन जंगमियों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) को दी गई। पुराने अफसरों ने इसकी पुष्टि की थी और उस समय के परगना के मालिक की मुहर के साथ यह सबूत पेश किया है कि ज़मीन पर उन्हीं का हक़ है। अतः शहंशाह की जान के सदक़े के रूप में यह ज़मीन उन्हें दे दी गई। ख़रीफ की फसल के प्रारम्भ से ज़मीन पर उनका क़ब्ज़ा बहाल किया जाय और फिर किसीप्रकार की दखलंदाज़ी न होने दी जाए, ताकि जंगमी लोग(शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) उसकी आमदनी से अपने देख-रेख कर सकें।’’ इस फ़रमान से केवल यही ता नहीं चलता कि औरंगज़ेब स्वभाव से न्यायप्रिय था, बल्कि यह भी साफ़ नज़र आता है कि वह इस तरह की जायदादों के बंटवारे में हिन्दू धार्मिक सेवकों के साथ कोई भेदभा नहीं बरता था। जंगमियों को 178 बीघा ज़मीन संभवतः स्वयं औरंगज़ेब ही ने प्रान की थी, क्योंकि एक दूसरे फ़रमान (तिथि 5 रमज़ान, 1071 हि.) में इसका स्पष्टीकरण किया गया है कि यह ज़मीन मालगुज़ारी मुक्त है। औरंगज़ेब ने एक दूसरे फरमान (1098 हि.) के द्वारा एक-दूसरी हिन्दू धार्मिक संस्था को भी जागीर प्रदान की। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘बनारस में गंगा नदी के किनारे बेनी-माधो घाट पर दो प्लाट खाली हैं एक मर्क़जी मस्जिद के किनारे रामजीवन गोसाईं के घर के सामने और दूसरा उससे पहले। ये प्लाट बैतुल-माल की मिल्कियत है। हमने यह प्लाट रामजीवन गोसाईं और उनके लड़के को ‘‘इनाम’ के रूप में प्रदान किया, ताकि उक्त प्लाटों पर बाहम्णें एवं फ़क़ीरों के लिए रिहायशी मकान बनाने के बाद वे खुदा की इबादत और हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए दूआ और प्रार्थना कने में लग जाएं। हमारे बेटों, वज़ीरों, अमीरों, उच्च पदाधिकारियों, दरोग़ा और वर्तमान एवं भावी कोतवालों के अनिवार्य है कि वे इस आदेश के पालन का ध्यान रखें और उक्त प्लाट, उपर्युक्त व्यक्ति और उसके वारिसों के क़ब्ज़े ही मे रहने दें और उनसे न कोई मालगुज़ारी या टैक्स लिया जसए और न उनसे हर साल नई सनद मांगी जाए।’’ लगता है औरंगज़ेब को अपनी प्रजा की धार्मिक भावनाओं के सम्मान का बहुत अधिक ध्यान रहता था। हमारे पास औरंगज़ेब का एक फ़रमान (2 सफ़र, 9 जुलूस) है जो असम के शह गोहाटी के उमानन्द मन्दिर के पुजारी सुदामन ब्राहम्ण के नाम है। असम के हिन्दू राजाओं की ओर से इस मन्दिर और उसके पुजारी को ज़मीन का एक टुकड़ा और कुछ जंगलों की आमदनी जागीर के रूप में दी गई थी, ताकि भोग का खर्च पूरा किया जा सके और पुजारी की आजीविका चल सके। जब यह प्रांत औरंगजेब के शासन-क्षेत्र में आया, तो उसने तुरंत ही एक फरमान के द्वारा इस जागीर को यथावत रखने का आदेश दिया। हिन्दुओं और उनके धर्म के साथ औरंगज़ेब की सहिष्ण्ता और उदारता का एक और सबूत उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर के पुजारियों से मिलता है। यह शिवजी के प्रमुख मन्दिरों में सेे एक है, जहां दिन-रात दीप प्रज्वलित रहता है। इसके लिए काफ़ी दिनों से पतिदिन चार सेर घी वहां की सरकार की ओर से उपलब्ध कराया जाथा था और पुजारी कहते हैं कि यह सिलसिला मुगल काल में भी जारी रहा। औरंगजेब ने भी इस परम्परा का सम्मान किया। इस सिलसिले में पुजारियों के पास दुर्भाग्य से कोई फ़रमान तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु एक आदेश की नक़ल ज़रूर है जो औरंगज़ब के काल में शहज़ादा मुराद बख़्श की तरफ से जारी किया गया था। (5 शव्वाल 1061 हि. को यह आदेश शहंशाह की ओर से शहज़ादा ने मन्दिर के पुजारी देव नारायण के एक आवेदन पर जारी किया था। वास्तविकता की पुष्टि के बाद इस आदेश में कहा गया हैं कि मन्दिर के दीप के लिए चबूतरा कोतवाल के तहसीलदार चार सेर (अकबरी घी प्रतिदिन के हिसाब से उपल्ब्ध कराएँ। इसकी नक़ल मूल आदेश के जारी होने के 93 साल बाद (1153 हिजरी) में मुहम्मद सअदुल्लाह ने पुनः जारी की। साधारण्तः इतिहासकार इसका बहुत उल्लेख करते हैं कि अहमदाबाद में नागर सेठ के बनवाए हुए चिन्तामणि मन्दिर को ध्वस्त किया गया, परन्तु इस वास्तविकता पर पर्दा डाल देते हैं कि उसी औरंगज़ेब ने उसी नागर सेठ के बनवाए हुए शत्रुन्जया और आबू मन्दिरों को काफ़ी बड़ी जागीरें प्रदान कीं। निःसंदेह इतिहास से यह प्रमाण्ति होता हैं कि औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मन्दिर और गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद को ढा देने का आदेश दिया था, परन्तु इसका कारण कुछ और ही था। विश्वनाथ मन्दिर के सिलसिले में घटनाक्रम यह बयान किया जाता है कि जब औरंगज़ेब बंगाल जाते हुए बनारस के पास से गुज़र रहा था, तो उसके काफिले में शामिल हिन्दू राजाओं ने बादशाह से निवेदन किया कि वहा। क़ाफ़िला एक दिन ठहर जाए तो उनकी रानियां बनारस जा कर गंगा दनी में स्नान कर लेंगी और विश्वनाथ जी के मन्दिर में श्रद्धा सुमन भी अर्पित कर आएँगी। औरंगज़ेब ने तुरंत ही यह निवेदन स्वीकार कर लिया और क़ाफिले के पडाव से बनारस तक पांच मील के रास्ते पर फ़ौजी पहरा बैठा दिया। रानियां पालकियों में सवार होकर गईं और स्नान एवं पूजा के बाद वापस आ गईं, परन्तु एक रानी (कच्छ की महारानी) वापस नहीं आई, तो उनकी बडी तलाश हुई, लेकिन पता नहीं चल सका। जब औरंगजै़ब को मालूम हुआ तो उसे बहुत गुस्सा आया और उसने अपने फ़ौज के बड़े-बड़े अफ़सरों को तलाश के लिए भेजा। आखिर में उन अफ़सरों ने देखा कि गणेश की मूर्ति जो दीवार में जड़ी हुई है, हिलती है। उन्होंने मूर्ति हटवा कर देख तो तहखाने की सीढी मिली और गुमशुदा रानी उसी में पड़ी रो रही थी। उसकी इज़्ज़त भी लूटी गई थी और उसके आभूषण भी छीन लिए गए थे। यह तहखाना विश्वनाथ जी की मूर्ति के ठीक नीचे था। राजाओं ने इस हरकत पर अपनी नाराज़गी जताई और विरोघ प्रकट किया। चूंकि यह बहुत घिनौना अपराध था, इसलिए उन्होंने कड़ी से कड़ी कार्रवाई कने की मांग की। उनकी मांग पर औरंगज़ेब ने आदेश दिया कि चूंकि पवित्र-स्थल को अपवित्र किया जा चुका है। अतः विश्नाथ जी की मूर्ति को कहीं और लेजा कर स्थापित कर दिया जाए और मन्दिर को गिरा कर ज़मीन को बराबर कर दिया जाय और महंत को मिरफतर कर लिया जाए। डाक्टर पट्ठाभि सीता रमैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द फ़ेदर्स एण्ड द स्टोन्स’ मे इस घटना को दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया है। पटना म्यूज़ियम के पूर्व क्यूरेटर डा. पी. एल. गुप्ता ने भी इस घटना की पुस्टि की है। गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद की घटना यह है कि वहां के राजा जो तानाशाह के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालगुज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालुगज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली का हिस्सा नहीं भेजते थे। कुछ ही वर्षाें में यह रक़म करोड़ों की हो गई। तानाशाह न यह ख़ज़ाना एक जगह ज़मीन में गाड़ कर उस पर मस्जिद बनवा दी। जब औरंज़ेब को इसका पता चला तो उसने आदेश दे दिया कि यह मस्जिद गिरा दी जाए। अतः गड़ा हुआ खज़ाना निकाल कर उसे जन-कल्याण के कामों मकें ख़र्च किया गया। ये दोनों मिसालें यह साबित करने के लिए काफ़ी हैं कि औरंगज़ेब न्याय के मामले में मन्दिर और मस्जिद में कोई फ़र्क़ नहीं समझता था। ‘‘दर्भाग्य से मध्यकाल और आधुनिक काल के भारतीय इतिहास की घटनाओं एवं चरित्रों को इस प्रकार तोड़-मरोड़ कर मनगढंत अंदाज़ में पेश किया जाता रहा है कि झूठ ही ईश्वरीय आदेश की सच्चाई की तरह स्वीकार किया जाने लगा, और उन लोगों को दोषी ठहराया जाने लगा जो तथ्य और पनगढंत बातों में अन्तर करते हैं। आज भी साम्प्रदायिक एवं स्वार्थी तत्व इतिहास को तोड़ने-मरोडने और उसे ग़लत रंग देने में लगे हुए हैं।
साभार पुस्तक ‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय,मधुर संदेश संगम, अबुल फज़्ल इन्कलेव, दिल्ली-25 औरंगज़ेब जेब
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।।
---
पुस्तक एवं लेखक:‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय, भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा, राज्यसभा के सदस्य, इलाहाबाद नगरपालिका के चेयरमैन एवं इतिहासकार
---
जब में इलाहाबाद नगरपालिका का चेयरमैन था (1948 ई. से 1953 ई. तक) तो मेरे सामने दाखिल-खारिज का एक मामला लाया गया। यह मामला सोमेश्वर नाथ महादेव मन्दिर से संबंधित जायदाद के बारे में था। मन्दिर के महंत की मृत्यु के बाद उस जायदाद के दो दावेदार खड़े हो गए थे। एक दावेदार ने कुछ दस्तावेज़ दाखिल किये जो उसके खानदान में बहुत दिनों से चले आ रहे थे। इन दस्तावेज़ों में शहंशाह औरंगज़ेब के फ़रमान भी थे। औरंगज़ेब ने इस मन्दिर को जागीर और नक़द अनुदान दिया था। मैंने सोचा कि ये फ़रमान जाली होंगे। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हो सकता है कि औरंगज़ेब जो मन्दिरों को तोडने के लिए प्रसिद्ध है, वह एक मन्दिर को यह कह कर जागीर दे सकता हे यह जागीर पूजा और भोग के लिए दी जा रही है। आखि़र औरंगज़ेब कैस बुतपरस्ती के साथ अपने को शरीक कर सकता था। मुझे यक़ीन था कि ये दस्तावेज़ जाली हैं, परन्तु कोई निर्णय लेने से पहले मैंने डा. सर तेज बहादुर सप्रु से राय लेना उचित समझा। वे अरबी और फ़ारसी के अच्छे जानकार थे। मैंने दस्तावेज़ें उनके सामने पेश करके उनकी राय मालूम की तो उन्होंने दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के बाद कहा कि औरंगजे़ब के ये फ़रमान असली और वास्तविक हैं। इसके बाद उन्होंने अपने मुन्शी से बनारस के जंगमबाडी शिव मन्दिर की फ़ाइल लाने को कहा। यह मुक़दमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 साल से विचाराधीन था। जंगमबाड़ी मन्दिर के महंत के पास भी औरंगज़ेब के कई फ़रमान थे, जिनमें मन्दिर को जागीर दी गई थी। इन दस्तावेज़ों ने औरंगज़ेब की एक नई तस्वीर मेरे सामने पेश की, उससे मैं आश्चर्य में पड़ गया। डाक्टर सप्रू की सलाह पर मैंने भारत के पिभिन्न प्रमुख मन्दिरों के महंतो के पास पत्र भेजकर उनसे निवेदन किया कि यदि उनके पास औरंगज़ेब के कुछ फ़रमान हों जिनमें उन मन्दिरों को जागीरें दी गई हों तो वे कृपा करके उनकी फोटो-स्टेट कापियां मेरे पास भेज दें। अब मेरे सामने एक और आश्चर्य की बात आई। उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर, चित्रकूट के बालाजी मन्दिर, गौहाटी के उमानन्द मन्दिर, शत्रुन्जाई के जैन मन्दिर और उत्तर भारत में फैले हुए अन्य प्रमुख मन्दिरों एवं गुरूद्वारों से सम्बन्धित जागीरों के लिए औरंगज़ेब के फरमानों की नक़लें मुझे प्राप्त हुई। यह फ़रमान 1065 हि. से 1091 हि., अर्थात 1659 से 1685 ई. के बीच जारी किए गए थे। हालांकि हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के प्रति औरंगज़ेब के उदार रवैये की ये कुछ मिसालें हैं, फिर भी इनसे यह प्रमाण्ति हो जाता है कि इतिहासकारों ने उसके सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, वह पक्षपात पर आधारित है और इससे उसकी तस्वीर का एक ही रूख सामने लाया गया है। भारत एक विशाल देश है, जिसमें हज़ारों मन्दिर चारों ओर फैले हुए हैं। यदि सही ढ़ंग से खोजबीन की जाए तो मुझे विश्वास है कि और बहुत-से ऐसे उदाहरण मिल जाऐंगे जिनसे औरंगज़ेब का गै़र-मुस्लिमों के प्रति उदार व्यवहार का पता चलेगा। औरंगज़ेब के फरमानों की जांच-पड़ताल के सिलसिले में मेरा सम्पर्क श्री ज्ञानचंद और पटना म्यूजियम के भूतपूर्व क्यूरेटर डा. पी एल. गुप्ता से हुआ। ये महानुभाव भी औरंगज़ेब के विषय में ऐतिहासिक दृस्टि से अति महत्वपूर्ण रिसर्च कर रहे थे। मुझे खुशी हुई कि कुछ अन्य अनुसन्धानकर्ता भी सच्चाई को तलाश करने में व्यस्त हैं और काफ़ी बदनाम औरंगज़ेब की तस्वीर को साफ़ करने में अपना योगदान दे रहे हैं। औरंगज़ेब, जिसे पक्षपाती इतिहासकारों ने भारत में मुस्लिम हकूमत का प्रतीक मान रखा है। उसके बारें में वे क्या विचार रखते हैं इसके विषय में यहां तक कि ‘शिबली’ जैसे इतिहास गवेषी कवि को कहना पड़ाः
तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।।
औरंगज़ेब पर हिन्दू-दुश्मनी के आरोप के सम्बन्ध में जिस फरमान को बहुत उछाला गया है, वह ‘फ़रमाने-बनारस’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह फ़रमान बनारस के मुहल्ला गौरी के एक ब्राहमण परिवार से संबंधित है। 1905 ई. में इसे गोपी उपाघ्याय के नवासे मंगल पाण्डेय ने सिटि मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया था। एसे पहली बार ‘एसियाटिक- सोसाइटी’ बंगाल के जर्नल (पत्रिका) ने 1911 ई. में प्रकाशित किया था। फलस्वरूप रिसर्च करनेवालों का ध्यान इधर गया। तब से इतिहासकार प्रायः इसका हवाला देते आ रहे हैं और वे इसके आधार पर औरंगज़ेब पर आरोप लगाते हैं कि उसने हिन्दू मन्दिरों के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था, जबकि इस फ़रमान का वास्तविक महत्व उनकी निगाहों से आझल रह जाता है। यह लिखित फ़रमान औरंगज़ेब ने 15 जुमादुल-अव्वल 1065 हि. (10 मार्च 1659 ई.) को बनारस के स्थानिय अधिकारी के नाम भेजा था जो एक ब्राहम्ण की शिकायत के सिलसिले में जारी किया गया था। वह ब्राहमण एक मन्दिर का महंत था और कुछ लोग उसे परेशान कर रहे थे। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘अबुल हसन को हमारी शाही उदारता का क़ायल रहते हुए यह जानना चाहिए कि हमारी स्वाभाविक दयालुता और प्राकृतिक न्याय के अनुसार हमारा सारा अनथक संघर्ष और न्यायप्रिय इरादों का उद्देश्य जन-कल्याण को अढ़ावा देना है और प्रत्येक उच्च एवं निम्न वर्गों के हालात को बेहतर बनाना है। अपने पवित्र कानून के अनुसार हमने फैसला किया है कि प्राचीन मन्दिरों को तबाह और बरबाद नहीं किया जाय, बलबत्ता नए मन्दिर न बनए जाएँ। हमारे इस न्याय पर आधारित काल में हमारे प्रतिष्ठित एवं पवित्र दरबार में यह सूचना पहुंची है कि कुछ लोग बनारस शहर और उसके आस-पास के हिन्दू नागरिकों और मन्दिरों के ब्राहम्णों-पुरोहितों को परेशान कर रहे हैं तथा उनके मामलों में दख़ल दे रहे हैं, जबकि ये प्राचीन मन्दिर उन्हीं की देख-रेख में हैं। इसके अतिरिक्त वे चाहते हैं कि इन ब्राहम्णों को इनके पुराने पदों से हटा दें। यह दखलंदाज़ी इस समुदाय के लिए परेशानी का कारण है। इसलिए यह हमारा फ़रमान है कि हमारा शाही हुक्म पहुंचते ही तुम हिदायत जारी कर दो कि कोई भी व्यक्ति ग़ैर-कानूनी रूप से दखलंदाजी न करे और न उन स्थानों के ब्राहम्णों एवं अन्य हिन्दु नागरिकों को परेशान करे। ताकि पहले की तरह उनका क़ब्ज़ा बरक़रार रहे और पूरे मनोयोग से वे हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के लिए प्रार्थना करते रहें। इस हुक्म को तुरन्त लागू किया जाये।’’ इस फरमान से बिल्कुल स्पष्ट हैं कि औरंगज़ेब ने नए मन्दिरों के निर्माण के विरूद्ध कोई नया हुक्म जारी नहीं किया, बल्कि उसने केवल पहले से चली आ रही परम्परा का हवाला दिया और उस परम्परा की पाबन्दी पर ज़ोर दिया। पहले से मौजूद मन्दिरों को ध्वस्त करने का उसने कठोरता से विरोध किया। इस फ़रमान से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वह हिन्दू प्रजा को सुख-शान्ति से जीवन व्यतीत करने का अवसर देने का इच्छुक था। यह अपने जैसा केवल एक ही फरमान नहीं है। बनारस में ही एक और फरमान मिलता है, जिससे स्पष्ट होता है कि औरंगज़ेब वास्तव में चाहता था कि हिन्दू सुख-शान्ति के साथ जीवन व्यतीत कर सकें। यह फरमान इस प्रकार हैः ‘‘रामनगर (बनारस) के महाराजाधिराज राजा रामसिंह ने हमारे दरबार में अर्ज़ी पेश की हैं कि उनके पिता ने गंगा नदी के किनारे अपने धार्मिक गुरू भगवत गोसाईं के निवास के लिए एक मकान बनवाया था। अब कुछ लोग गोसाईं को परेशान कर रहे हैं। अतः यह शाही फ़रमान जारी किया जाता है कि इस फरमान के पहुंचते ही सभी वर्तमान एवं आने वाले अधिकारी इस बात का पूरा ध्यान रखें कि कोई भी व्यक्ति गोसाईं को परेशान एवं डरा-धमका न सके, और न उनके मामलें में हस्तक्षेप करे, ताकि वे पूरे मनोयोग के साथ हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए प्रार्थना करते रहें। इस फरमान पर तुरं अमल गिया जाए।’’ (तीरीख-17 बबी उस्सानी 1091 हिजरी) जंगमबाड़ी मठ के महंत के पास मौजूद कुछ फरमानों से पता चलता है कि औरंगज़ैब कभी यह सहन नहीं करता था कि उसकी प्रजा के अधिकार किसी प्रकार से भी छीने जाएँ, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान। वह अपराधियों के साथ सख़्ती से पेश आता था। इन फरमानों में एक जंगम लोंगों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) की ओर से एक मुसलमान नागरिक के दरबार में लाया गया, जिस पर शाही हुक्म दिया गया कि बनारस सूबा इलाहाबाद के अफ़सरों को सूचित किया जाता है कि पुराना बनारस के नागरिकों अर्जुनमल और जंगमियों ने शिकायत की है कि बनारस के एक नागरिक नज़ीर बेग ने क़स्बा बनारस में उनकी पांच हवेलियों पर क़ब्जा कर लिया है। उन्हें हुक्द दिया जाता है कि यदि शिकायत सच्ची पाई जाए और जायदा की मिल्कियत का अधिकार प्रमानिण हो जाए तो नज़ीर बेग को उन हवेलियों में दाखि़ल न होने दया जाए, ताकि जंगमियों को भविष्य में अपनी शिकायत दूर करवाने के लिएए हमारे दरबार में ने आना पडे। इस फ़रमान पर 11 शाबान, 13 जुलूस (1672 ई.) की तारीख़ दर्ज है। इसी मठ के पास मौजूद एक-दूसरे फ़रमान में जिस पर पहली नबीउल-अव्वल 1078 हि. की तारीख दर्ज़ है, यह उल्लेख है कि ज़मीन का क़ब्ज़ा जंगमियों को दया गया। फ़रमान में है- ‘‘परगना हवेली बनारस के सभी वर्तमान और भावी जागीरदारों एवं करोडियों को सूचित किया जाता है कि शहंशाह के हुक्म से 178 बीघा ज़मीन जंगमियों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) को दी गई। पुराने अफसरों ने इसकी पुष्टि की थी और उस समय के परगना के मालिक की मुहर के साथ यह सबूत पेश किया है कि ज़मीन पर उन्हीं का हक़ है। अतः शहंशाह की जान के सदक़े के रूप में यह ज़मीन उन्हें दे दी गई। ख़रीफ की फसल के प्रारम्भ से ज़मीन पर उनका क़ब्ज़ा बहाल किया जाय और फिर किसीप्रकार की दखलंदाज़ी न होने दी जाए, ताकि जंगमी लोग(शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) उसकी आमदनी से अपने देख-रेख कर सकें।’’ इस फ़रमान से केवल यही ता नहीं चलता कि औरंगज़ेब स्वभाव से न्यायप्रिय था, बल्कि यह भी साफ़ नज़र आता है कि वह इस तरह की जायदादों के बंटवारे में हिन्दू धार्मिक सेवकों के साथ कोई भेदभा नहीं बरता था। जंगमियों को 178 बीघा ज़मीन संभवतः स्वयं औरंगज़ेब ही ने प्रान की थी, क्योंकि एक दूसरे फ़रमान (तिथि 5 रमज़ान, 1071 हि.) में इसका स्पष्टीकरण किया गया है कि यह ज़मीन मालगुज़ारी मुक्त है। औरंगज़ेब ने एक दूसरे फरमान (1098 हि.) के द्वारा एक-दूसरी हिन्दू धार्मिक संस्था को भी जागीर प्रदान की। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘बनारस में गंगा नदी के किनारे बेनी-माधो घाट पर दो प्लाट खाली हैं एक मर्क़जी मस्जिद के किनारे रामजीवन गोसाईं के घर के सामने और दूसरा उससे पहले। ये प्लाट बैतुल-माल की मिल्कियत है। हमने यह प्लाट रामजीवन गोसाईं और उनके लड़के को ‘‘इनाम’ के रूप में प्रदान किया, ताकि उक्त प्लाटों पर बाहम्णें एवं फ़क़ीरों के लिए रिहायशी मकान बनाने के बाद वे खुदा की इबादत और हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए दूआ और प्रार्थना कने में लग जाएं। हमारे बेटों, वज़ीरों, अमीरों, उच्च पदाधिकारियों, दरोग़ा और वर्तमान एवं भावी कोतवालों के अनिवार्य है कि वे इस आदेश के पालन का ध्यान रखें और उक्त प्लाट, उपर्युक्त व्यक्ति और उसके वारिसों के क़ब्ज़े ही मे रहने दें और उनसे न कोई मालगुज़ारी या टैक्स लिया जसए और न उनसे हर साल नई सनद मांगी जाए।’’ लगता है औरंगज़ेब को अपनी प्रजा की धार्मिक भावनाओं के सम्मान का बहुत अधिक ध्यान रहता था। हमारे पास औरंगज़ेब का एक फ़रमान (2 सफ़र, 9 जुलूस) है जो असम के शह गोहाटी के उमानन्द मन्दिर के पुजारी सुदामन ब्राहम्ण के नाम है। असम के हिन्दू राजाओं की ओर से इस मन्दिर और उसके पुजारी को ज़मीन का एक टुकड़ा और कुछ जंगलों की आमदनी जागीर के रूप में दी गई थी, ताकि भोग का खर्च पूरा किया जा सके और पुजारी की आजीविका चल सके। जब यह प्रांत औरंगजेब के शासन-क्षेत्र में आया, तो उसने तुरंत ही एक फरमान के द्वारा इस जागीर को यथावत रखने का आदेश दिया। हिन्दुओं और उनके धर्म के साथ औरंगज़ेब की सहिष्ण्ता और उदारता का एक और सबूत उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर के पुजारियों से मिलता है। यह शिवजी के प्रमुख मन्दिरों में सेे एक है, जहां दिन-रात दीप प्रज्वलित रहता है। इसके लिए काफ़ी दिनों से पतिदिन चार सेर घी वहां की सरकार की ओर से उपलब्ध कराया जाथा था और पुजारी कहते हैं कि यह सिलसिला मुगल काल में भी जारी रहा। औरंगजेब ने भी इस परम्परा का सम्मान किया। इस सिलसिले में पुजारियों के पास दुर्भाग्य से कोई फ़रमान तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु एक आदेश की नक़ल ज़रूर है जो औरंगज़ब के काल में शहज़ादा मुराद बख़्श की तरफ से जारी किया गया था। (5 शव्वाल 1061 हि. को यह आदेश शहंशाह की ओर से शहज़ादा ने मन्दिर के पुजारी देव नारायण के एक आवेदन पर जारी किया था। वास्तविकता की पुष्टि के बाद इस आदेश में कहा गया हैं कि मन्दिर के दीप के लिए चबूतरा कोतवाल के तहसीलदार चार सेर (अकबरी घी प्रतिदिन के हिसाब से उपल्ब्ध कराएँ। इसकी नक़ल मूल आदेश के जारी होने के 93 साल बाद (1153 हिजरी) में मुहम्मद सअदुल्लाह ने पुनः जारी की। साधारण्तः इतिहासकार इसका बहुत उल्लेख करते हैं कि अहमदाबाद में नागर सेठ के बनवाए हुए चिन्तामणि मन्दिर को ध्वस्त किया गया, परन्तु इस वास्तविकता पर पर्दा डाल देते हैं कि उसी औरंगज़ेब ने उसी नागर सेठ के बनवाए हुए शत्रुन्जया और आबू मन्दिरों को काफ़ी बड़ी जागीरें प्रदान कीं। निःसंदेह इतिहास से यह प्रमाण्ति होता हैं कि औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मन्दिर और गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद को ढा देने का आदेश दिया था, परन्तु इसका कारण कुछ और ही था। विश्वनाथ मन्दिर के सिलसिले में घटनाक्रम यह बयान किया जाता है कि जब औरंगज़ेब बंगाल जाते हुए बनारस के पास से गुज़र रहा था, तो उसके काफिले में शामिल हिन्दू राजाओं ने बादशाह से निवेदन किया कि वहा। क़ाफ़िला एक दिन ठहर जाए तो उनकी रानियां बनारस जा कर गंगा दनी में स्नान कर लेंगी और विश्वनाथ जी के मन्दिर में श्रद्धा सुमन भी अर्पित कर आएँगी। औरंगज़ेब ने तुरंत ही यह निवेदन स्वीकार कर लिया और क़ाफिले के पडाव से बनारस तक पांच मील के रास्ते पर फ़ौजी पहरा बैठा दिया। रानियां पालकियों में सवार होकर गईं और स्नान एवं पूजा के बाद वापस आ गईं, परन्तु एक रानी (कच्छ की महारानी) वापस नहीं आई, तो उनकी बडी तलाश हुई, लेकिन पता नहीं चल सका। जब औरंगजै़ब को मालूम हुआ तो उसे बहुत गुस्सा आया और उसने अपने फ़ौज के बड़े-बड़े अफ़सरों को तलाश के लिए भेजा। आखिर में उन अफ़सरों ने देखा कि गणेश की मूर्ति जो दीवार में जड़ी हुई है, हिलती है। उन्होंने मूर्ति हटवा कर देख तो तहखाने की सीढी मिली और गुमशुदा रानी उसी में पड़ी रो रही थी। उसकी इज़्ज़त भी लूटी गई थी और उसके आभूषण भी छीन लिए गए थे। यह तहखाना विश्वनाथ जी की मूर्ति के ठीक नीचे था। राजाओं ने इस हरकत पर अपनी नाराज़गी जताई और विरोघ प्रकट किया। चूंकि यह बहुत घिनौना अपराध था, इसलिए उन्होंने कड़ी से कड़ी कार्रवाई कने की मांग की। उनकी मांग पर औरंगज़ेब ने आदेश दिया कि चूंकि पवित्र-स्थल को अपवित्र किया जा चुका है। अतः विश्नाथ जी की मूर्ति को कहीं और लेजा कर स्थापित कर दिया जाए और मन्दिर को गिरा कर ज़मीन को बराबर कर दिया जाय और महंत को मिरफतर कर लिया जाए। डाक्टर पट्ठाभि सीता रमैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द फ़ेदर्स एण्ड द स्टोन्स’ मे इस घटना को दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया है। पटना म्यूज़ियम के पूर्व क्यूरेटर डा. पी. एल. गुप्ता ने भी इस घटना की पुस्टि की है। गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद की घटना यह है कि वहां के राजा जो तानाशाह के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालगुज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालुगज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली का हिस्सा नहीं भेजते थे। कुछ ही वर्षाें में यह रक़म करोड़ों की हो गई। तानाशाह न यह ख़ज़ाना एक जगह ज़मीन में गाड़ कर उस पर मस्जिद बनवा दी। जब औरंज़ेब को इसका पता चला तो उसने आदेश दे दिया कि यह मस्जिद गिरा दी जाए। अतः गड़ा हुआ खज़ाना निकाल कर उसे जन-कल्याण के कामों मकें ख़र्च किया गया। ये दोनों मिसालें यह साबित करने के लिए काफ़ी हैं कि औरंगज़ेब न्याय के मामले में मन्दिर और मस्जिद में कोई फ़र्क़ नहीं समझता था। ‘‘दर्भाग्य से मध्यकाल और आधुनिक काल के भारतीय इतिहास की घटनाओं एवं चरित्रों को इस प्रकार तोड़-मरोड़ कर मनगढंत अंदाज़ में पेश किया जाता रहा है कि झूठ ही ईश्वरीय आदेश की सच्चाई की तरह स्वीकार किया जाने लगा, और उन लोगों को दोषी ठहराया जाने लगा जो तथ्य और पनगढंत बातों में अन्तर करते हैं। आज भी साम्प्रदायिक एवं स्वार्थी तत्व इतिहास को तोड़ने-मरोडने और उसे ग़लत रंग देने में लगे हुए हैं।
साभार पुस्तक ‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय,मधुर संदेश संगम, अबुल फज़्ल इन्कलेव, दिल्ली-25 औरंगज़ेब जेब
Thursday, March 12, 2009
عمر کیرانوی اردو اخباروں میں उमर कैरानवी उर्दू समाचारपत्रों में
www.shahafat.in
qadiyaniyat (ahmadiyat) ki haqeeqat in roman
ahamadi dharm ke aarambh karane vale mirza gulam ahamad qaadiyani jo kabhi krishnnaji bane aur yahoodiyon aur eesaiyon ko apane jal men fansane ke lie moosa aur eesa bhi bane. aaj musalamanon ke lie sir dard bane huye hain, yah pustak qadiyaniyat (ahmadiyat) ki haqeeqat un nam ke musalamanon jinako 56 islamik deshon ne isalam dharm se nikal rakha hai, jo haj ke lie makka nahin ja sakate, panjab ke kadiyan kasbe men apana haj kar lete hain kee haqeeqt bayan karati hai, yah kitab hindi men unake prachar ko khatm karegi. inshaallah.
qadiyaniyat (ahmadiyat) ki haqeeqat in hindi unicode कादियानियों ( अहमदियों ) की हकीकत
Wednesday, February 11, 2009
Urdu Unicode Solution
can't see hindi text, install leguage pack:Insert XP-cd:Goto Control Panel -> Regional and Language Options\Goto Languages tab in Regional and Language Options dialog\Check the Install files for complex script and right-to-left languages (including Thai) checkbox\Click Apply to complete installation --
help for vista
http://www.raftaar.in/faq.htm-Then you will read my article & will see hindi websites.
اردو ٹیکسٹ میں ای میل کرنا
اردو یونی کوڈ اردو ٹیکسٹ میں، ای میل کرنا،گوگل میں سرچ کرنا،بلاگنگ اور بیشترویب سائٹوں میں یونی کوڈ کااستعمال ہورہاہے۔چونکہ اس کی فائلیں بہت کم جگہ لیتی ہیں۔ اس لئے استفادہ کرنے والے اخبار رسائل میٹرکو اپنے محدود spaceمیں زیادہ دنوں تک رکھ سکتے ہیں۔اب یونی کوڈآسانی سے اپنایا جاسکتاہے۔کچھ طریقے مندرجہ ذیل ہیں: xpکے میں اردویونی کوڈ کی سہولت پہلے سے ہی ہوتی ہے۔ control pannelمیں reginal settingمیں thai lenguageوالا باکس آن کرلیں aplyکرنے سے پہلے Xp-CD لگالیں تو بہتر ہے پھراوہر کی ٹیپ سے کی بورڈ ایڈ کرلیں۔لینگویج بار آپ کے سامنے ہوگی جب جہاں چاہیں اردو لکھیں جب چاہیں انگلش لکھیں۔ Phonetic Key board کے جانکاروں کے لئے یونی کوڈ میں بہت سی آسانیاں ہیں،Phonetic کا کی بورڈ سافٹ ویئر بھی آسانی سے ڈاون لوڈ کرسکتے ہیں۔نئے لوگوں کوPhoneticکی بورڈ ہی استعمال کرنا چاہےے۔ فونیٹک کی بورڈ پر آن لائن بھی ہے جس پر آپ کی بورڈ سے یا ماس سے بھی کمپوز کرسکتے ہیں۔www.urdukeyboard.com ویب سائٹ پر Phonetic Key board میں آن لائن ٹائپنگ کرسکتے ہیں،جسے کاپی کرکے ای میل ،بلاگ یا پھرویب سائٹ میں پیسٹ کرسکتے ہیں۔ urdu unicode solution نام کا سافٹ ویئرتوبس یوں کہہ لیں کہ خدائی مدد ہے۔ اُردو یونی کوڈ سولوشن سافٹ ویئر کے ذریعے ان پیج سافٹ ویئر کا کمپوز میٹر یونی کوڈ میں بدل سکتے ہیں اوراسی کے ذریعہ کسی ویب سائٹ کے یونی کوڈ میٹر کو اِن پیج ٹیکسٹ میں بھی بدل سکتے ہیں۔ اِس کے ایک باکس میں یونی کوڈ ڈالو دوسرے دوسرے میں جو ٹیکسٹ آتاہے اُسے اپنی مطلوبہ شکل میں استعمال کرسکتے ہیں۔ انتہائی خوشی کی بات یہ کہ xpپر دیکھنے والے کوزبانی پروگرام بھی انسٹال نہیں کرناہوتاجبکہ ہندی کی ویب سائٹ کو پڑھنے کے لےے لازمی انسٹال کرنا ہوتاہے۔ آفتاب کی بورڈجسے بی بی سی اردو نے اپنایاہے۔پرانے لوگ اسی کی بورڈ پر کام کرتے آئے ہیں، جو کاتب،شاہکار،صفحہ ساز جیسے سافٹ ویئروں کا کامن کی بورڈ رہا ہے اورآگے بھی کسی نئے سافٹ ویئر کا کی بورڈ ہونے کے قوی امکان ہیں۔یہ مجھے آن لائن تو نہیں مل سکامگر میرے پاس ہے اِس میں جلد ہی اِسے آن لائن کروں گا،ابھی تجربہ کے مراحل میں ہے۔آفتاب کی بورڈ بی بی سی پر یہ آن لائن بھی دیکھا جاسکتاہے۔بی بی سی اردو کے ”ہمیں لکھئے سیکشن“ میں ایک دو لائن لکھ کر وہاں سے ماؤس کے ذریعہ( Control+Cکا استعمال نہ کریں) copy کرکے اپنے ای میل وغیرہ میں پیسٹ کرسکتے ہیں۔ ان پیج سافٹ ویئر۔۳،میں سبھی کی بورڈ کے ساتھ اردو یونی کوڈ میں لکھا جاسکتاہے۔ اِسے یونی کوڈ کی ضرورتوں کو دیکھتے ہوئے تیار کیاگیا۔ائنٹرنیٹ پرابھی اِس کے ڈیمو دیکھ سکتے ہیں۔ ہندی،اُردو یونی کوڈایڈٹ کرنے کے لےے کسی سافٹ ویئر کے ڈاون لوڈ کرنے سے پہلے ایکس پی میںreginal setingمیں لینگویج پیک کوwindow-xp Cdسے انسٹال کرلیں تو بہتر ہے۔http://www.4shared.comسے/ معروف پروگراموں کے علاوہ اُردو کے تقریباً سبھی سافٹ ویئر ڈاؤن لوڈکیے جاسکتے ہیں۔
help for vista
http://www.raftaar.in/faq.htm-Then you will read my article & will see hindi websites.
اردو ٹیکسٹ میں ای میل کرنا
اردو یونی کوڈ اردو ٹیکسٹ میں، ای میل کرنا،گوگل میں سرچ کرنا،بلاگنگ اور بیشترویب سائٹوں میں یونی کوڈ کااستعمال ہورہاہے۔چونکہ اس کی فائلیں بہت کم جگہ لیتی ہیں۔ اس لئے استفادہ کرنے والے اخبار رسائل میٹرکو اپنے محدود spaceمیں زیادہ دنوں تک رکھ سکتے ہیں۔اب یونی کوڈآسانی سے اپنایا جاسکتاہے۔کچھ طریقے مندرجہ ذیل ہیں: xpکے میں اردویونی کوڈ کی سہولت پہلے سے ہی ہوتی ہے۔ control pannelمیں reginal settingمیں thai lenguageوالا باکس آن کرلیں aplyکرنے سے پہلے Xp-CD لگالیں تو بہتر ہے پھراوہر کی ٹیپ سے کی بورڈ ایڈ کرلیں۔لینگویج بار آپ کے سامنے ہوگی جب جہاں چاہیں اردو لکھیں جب چاہیں انگلش لکھیں۔ Phonetic Key board کے جانکاروں کے لئے یونی کوڈ میں بہت سی آسانیاں ہیں،Phonetic کا کی بورڈ سافٹ ویئر بھی آسانی سے ڈاون لوڈ کرسکتے ہیں۔نئے لوگوں کوPhoneticکی بورڈ ہی استعمال کرنا چاہےے۔ فونیٹک کی بورڈ پر آن لائن بھی ہے جس پر آپ کی بورڈ سے یا ماس سے بھی کمپوز کرسکتے ہیں۔www.urdukeyboard.com ویب سائٹ پر Phonetic Key board میں آن لائن ٹائپنگ کرسکتے ہیں،جسے کاپی کرکے ای میل ،بلاگ یا پھرویب سائٹ میں پیسٹ کرسکتے ہیں۔ urdu unicode solution نام کا سافٹ ویئرتوبس یوں کہہ لیں کہ خدائی مدد ہے۔ اُردو یونی کوڈ سولوشن سافٹ ویئر کے ذریعے ان پیج سافٹ ویئر کا کمپوز میٹر یونی کوڈ میں بدل سکتے ہیں اوراسی کے ذریعہ کسی ویب سائٹ کے یونی کوڈ میٹر کو اِن پیج ٹیکسٹ میں بھی بدل سکتے ہیں۔ اِس کے ایک باکس میں یونی کوڈ ڈالو دوسرے دوسرے میں جو ٹیکسٹ آتاہے اُسے اپنی مطلوبہ شکل میں استعمال کرسکتے ہیں۔ انتہائی خوشی کی بات یہ کہ xpپر دیکھنے والے کوزبانی پروگرام بھی انسٹال نہیں کرناہوتاجبکہ ہندی کی ویب سائٹ کو پڑھنے کے لےے لازمی انسٹال کرنا ہوتاہے۔ آفتاب کی بورڈجسے بی بی سی اردو نے اپنایاہے۔پرانے لوگ اسی کی بورڈ پر کام کرتے آئے ہیں، جو کاتب،شاہکار،صفحہ ساز جیسے سافٹ ویئروں کا کامن کی بورڈ رہا ہے اورآگے بھی کسی نئے سافٹ ویئر کا کی بورڈ ہونے کے قوی امکان ہیں۔یہ مجھے آن لائن تو نہیں مل سکامگر میرے پاس ہے اِس میں جلد ہی اِسے آن لائن کروں گا،ابھی تجربہ کے مراحل میں ہے۔آفتاب کی بورڈ بی بی سی پر یہ آن لائن بھی دیکھا جاسکتاہے۔بی بی سی اردو کے ”ہمیں لکھئے سیکشن“ میں ایک دو لائن لکھ کر وہاں سے ماؤس کے ذریعہ( Control+Cکا استعمال نہ کریں) copy کرکے اپنے ای میل وغیرہ میں پیسٹ کرسکتے ہیں۔ ان پیج سافٹ ویئر۔۳،میں سبھی کی بورڈ کے ساتھ اردو یونی کوڈ میں لکھا جاسکتاہے۔ اِسے یونی کوڈ کی ضرورتوں کو دیکھتے ہوئے تیار کیاگیا۔ائنٹرنیٹ پرابھی اِس کے ڈیمو دیکھ سکتے ہیں۔ ہندی،اُردو یونی کوڈایڈٹ کرنے کے لےے کسی سافٹ ویئر کے ڈاون لوڈ کرنے سے پہلے ایکس پی میںreginal setingمیں لینگویج پیک کوwindow-xp Cdسے انسٹال کرلیں تو بہتر ہے۔http://www.4shared.comسے/ معروف پروگراموں کے علاوہ اُردو کے تقریباً سبھی سافٹ ویئر ڈاؤن لوڈکیے جاسکتے ہیں۔
Thursday, February 5, 2009
हिन्दी युनिकोड हेतु मेरी समस्याओं और समाधान की यात्रा
can't see hindi text,
install language pack: Insert XP-cd:Goto Control Panel -> Regional and Language Options\Goto Languages tab in Regional and Language Options dialog\Check the Install files for complex script and right-to-left languages (including Thai) checkbox\Click Apply to complete installation
--help for vista
http://www.raftaar.in/faq.htm
-Then you will read my article & will see hindi websites.
क्यों? कैसे और कितना सीखा
स्थानीय समाचार पत्र के संवाददाता के लेख चाहने पर अपनी वेबसाइट बता देता था, जिसपर लेख चित्र के रूप में होते जिसके कारण जिन्हें छापने या अपनी वेबसाइट में देने के लिए उन्हें फिर से कम्पोज और प्रूफ करना होता था। ऐसी अनेक समस्याओं का समाधान मुझे युनिकोड में नज़र आया। युनिकोड सीखने के लिय गूगल पर सर्च करने पर ज्ञात हुआ कि विन्डो एक्सपी में हिन्दी युनिकोड की सुविधा उपलब्ध होती है जिसका कीबोर्ड अलग होता है जो नये सीखने वालों के लिए सर्वोत्तम उपाय है। मगर मैं तो रेमिंगटन कीबोर्ड जानता हूं जिसे अधिकतर पुराने लोग जानतें हें। क्योंकि मेरे बहुत से लेख कृतिदेव फोंट में थे सोचा पहले जो कम्पोज़ उसे युनिकोड में परिवर्तित करलूं इसलिए उन्हें यूनिकोड फ़ोण्ट परिवर्तित्रhttp://technical-hindi.googlegroups.com/web/Unicode-to-krutidev010+converter05.htm?gda=jrqWKlgAAACvU6A81ce-VK-7mMsEVyXzn0H4aNSO1k4L8_jiRKAPPlFpn2p4dqFyrBv_aLL4HyMGsoK730gK0BvsdXSMEmptQSUx-b5VnCskJ7iVMxldMBo1YHcDYvgcK1MwRk9oTs4 ओनलाइन सुविधा जो कि जिसका लिंक गूगल ग्रूप technical-hindi.googlegroups dot com से मिला, यहॉ कई फोन्ट के परिवर्तक लिंक उपलब्ध हैं से युनिकोड में कर लिया। इसमें एक बाक्स में कृतिदेव फोंट का टेक्सट डालो दूसरे बाक्स में युनिकोड हो जाता है। मगर इसमें कुछ त्रूटियां हो जाती है। जैसे मॉागने, ,जहाॅ, सर्वाेउत्तम शब्दों के बीच में डब्बा बना मिलेगा और चंद्रा बिन्दी ॅ को डबल कर देने जैसी बाते होती हैं जिनके लिए अब इस युनिकोड को दूसरी वेब में पेस्ट किया, यहॉ पर रेमिंगटन कीबोर्ड में लिख सकते हैं कीबोर्ड भी आनलाईन दिखाई देता है।
उर्दू से हिन्दी अनुवादक
यूनिकोड से कृतिदेव०१० फ़ोण्ट परिवर्तित्र
रोमन टाइप करने से हिन्दी
लेख में नई बातें लिखने के यहॉं यह समस्या आई कि जो कीबोर्ड में है वही लिख सकते हैं जैसे हृ द्द अर्थात जिस शब्द में डबल Conjuncts आया वह कैसे लिखें। इस समस्या के लिए बहुत से हिन्दी ब्लाग जैसे raviratlami.blogspot dot com & blogg.raftaar dot in इत्यादी के अनेक लेख पढ़ने पर यह हल समझ में आया कि माईकरोसाफ्ट द्वारा प्रस्तुत bhashaindia dot com पर hindi IMe उपलब्ध साफटवेयर प्रयोग किया जाए। इसमें कई कीबोर्ड होते हैं इसके द्वारा आफलाइन काम किया जा सकता है यह बहुत अच्छा साफटवेयर है इसका Akurti कीबोर्ड प्रयोग करके फिर अपनी post ऐडिट करना आरम्भ किया इसमे डबल शब्दों को शार्टकटस का प्रयोग करके टाइप किया जा सकता है । रेमिंगटन कीबोर्ड के जानकारों के लिये यही उपयुक्त है । जो शब्द इन शार्टकटस जो कि हेल्प में देखे जा सकते हैं या वह जो इसमें नहीं बन पाये लगभग सभी Devanāgarī conjunct consonants इस साईट से कापी करके अपना शब्द पूर्ण किया जा सकता हैं। एक नई पोस्ट को कम्पोज कर रहा था कि उसमें शब्द राष्ट्रीय लिखना था। अब यह नई समस्या कि तीन conjunct से बना शब्द कैसे लिखूं? बहुत खोजने पर भी जब कोई हल नज़र ना आया तो एक युक्ति काम कर गयी। सोचा कि गूगल की अनुवाद सुविधा में अनुवाद युनिकोड में होता है। इंगिलश में National लिखकर अनुवाद किया तो राष्ट्रीय शब्द मिल गया उसे कोपी करके अपने लेख में ले आया। The Sanskrit alphabet के ष्ट्र, श्च्य और आधी फ के साथ (फ्फ) इस साईट से कापी करके प्रयोग किये जा सकते हैं। विश्लेषन, अश्विनी जैसे शब्दों का भी ऐसा ही हल है।
हिन्दी राईटर साफ्टवेयर बहुत पसंद किया जा रहा है मेरे तजुर्बा है कि यह फोनेटिक की बोर्ड का होने के कारण नये यूजर के लिये अच्छा रहेगा पुराने लोग इसको अपनी हिन्दी युनिकोड स्पेलिंग के लिये भी प्रयोग कर रहे हैं। विन्डोज लाइव राइटर के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है उसे पढ़कर लगता है कि hindi IMe ही ठीक है
मेरा तो युनिकोड की समस्याओं और समाधान का सफर जारी है समय मिला तो इस पोस्ट को फिर एडिट करूंगा, साथ साथ उर्दू युनिकोड का सफर भी जारी है ।
बाकी फिर कभी ।
..............................................
unicode to krutidev
हिन्दी
हिन्दी
रोमन में लिखो हिन्दी हो जाएगी
http://quillpad.in/hindi/
डाउनलोड कुर्तिदेव फ़ॉन्ट 010
usefull software link
install language pack: Insert XP-cd:Goto Control Panel -> Regional and Language Options\Goto Languages tab in Regional and Language Options dialog\Check the Install files for complex script and right-to-left languages (including Thai) checkbox\Click Apply to complete installation
--help for vista
http://www.raftaar.in/faq.htm
-Then you will read my article & will see hindi websites.
क्यों? कैसे और कितना सीखा
स्थानीय समाचार पत्र के संवाददाता के लेख चाहने पर अपनी वेबसाइट बता देता था, जिसपर लेख चित्र के रूप में होते जिसके कारण जिन्हें छापने या अपनी वेबसाइट में देने के लिए उन्हें फिर से कम्पोज और प्रूफ करना होता था। ऐसी अनेक समस्याओं का समाधान मुझे युनिकोड में नज़र आया। युनिकोड सीखने के लिय गूगल पर सर्च करने पर ज्ञात हुआ कि विन्डो एक्सपी में हिन्दी युनिकोड की सुविधा उपलब्ध होती है जिसका कीबोर्ड अलग होता है जो नये सीखने वालों के लिए सर्वोत्तम उपाय है। मगर मैं तो रेमिंगटन कीबोर्ड जानता हूं जिसे अधिकतर पुराने लोग जानतें हें। क्योंकि मेरे बहुत से लेख कृतिदेव फोंट में थे सोचा पहले जो कम्पोज़ उसे युनिकोड में परिवर्तित करलूं इसलिए उन्हें यूनिकोड फ़ोण्ट परिवर्तित्रhttp://technical-hindi.googlegroups.com/web/Unicode-to-krutidev010+converter05.htm?gda=jrqWKlgAAACvU6A81ce-VK-7mMsEVyXzn0H4aNSO1k4L8_jiRKAPPlFpn2p4dqFyrBv_aLL4HyMGsoK730gK0BvsdXSMEmptQSUx-b5VnCskJ7iVMxldMBo1YHcDYvgcK1MwRk9oTs4 ओनलाइन सुविधा जो कि जिसका लिंक गूगल ग्रूप technical-hindi.googlegroups dot com से मिला, यहॉ कई फोन्ट के परिवर्तक लिंक उपलब्ध हैं से युनिकोड में कर लिया। इसमें एक बाक्स में कृतिदेव फोंट का टेक्सट डालो दूसरे बाक्स में युनिकोड हो जाता है। मगर इसमें कुछ त्रूटियां हो जाती है। जैसे मॉागने, ,जहाॅ, सर्वाेउत्तम शब्दों के बीच में डब्बा बना मिलेगा और चंद्रा बिन्दी ॅ को डबल कर देने जैसी बाते होती हैं जिनके लिए अब इस युनिकोड को दूसरी वेब में पेस्ट किया, यहॉ पर रेमिंगटन कीबोर्ड में लिख सकते हैं कीबोर्ड भी आनलाईन दिखाई देता है।
उर्दू से हिन्दी अनुवादक
यूनिकोड से कृतिदेव०१० फ़ोण्ट परिवर्तित्र
रोमन टाइप करने से हिन्दी
लेख में नई बातें लिखने के यहॉं यह समस्या आई कि जो कीबोर्ड में है वही लिख सकते हैं जैसे हृ द्द अर्थात जिस शब्द में डबल Conjuncts आया वह कैसे लिखें। इस समस्या के लिए बहुत से हिन्दी ब्लाग जैसे raviratlami.blogspot dot com & blogg.raftaar dot in इत्यादी के अनेक लेख पढ़ने पर यह हल समझ में आया कि माईकरोसाफ्ट द्वारा प्रस्तुत bhashaindia dot com पर hindi IMe उपलब्ध साफटवेयर प्रयोग किया जाए। इसमें कई कीबोर्ड होते हैं इसके द्वारा आफलाइन काम किया जा सकता है यह बहुत अच्छा साफटवेयर है इसका Akurti कीबोर्ड प्रयोग करके फिर अपनी post ऐडिट करना आरम्भ किया इसमे डबल शब्दों को शार्टकटस का प्रयोग करके टाइप किया जा सकता है । रेमिंगटन कीबोर्ड के जानकारों के लिये यही उपयुक्त है । जो शब्द इन शार्टकटस जो कि हेल्प में देखे जा सकते हैं या वह जो इसमें नहीं बन पाये लगभग सभी Devanāgarī conjunct consonants इस साईट से कापी करके अपना शब्द पूर्ण किया जा सकता हैं। एक नई पोस्ट को कम्पोज कर रहा था कि उसमें शब्द राष्ट्रीय लिखना था। अब यह नई समस्या कि तीन conjunct से बना शब्द कैसे लिखूं? बहुत खोजने पर भी जब कोई हल नज़र ना आया तो एक युक्ति काम कर गयी। सोचा कि गूगल की अनुवाद सुविधा में अनुवाद युनिकोड में होता है। इंगिलश में National लिखकर अनुवाद किया तो राष्ट्रीय शब्द मिल गया उसे कोपी करके अपने लेख में ले आया। The Sanskrit alphabet के ष्ट्र, श्च्य और आधी फ के साथ (फ्फ) इस साईट से कापी करके प्रयोग किये जा सकते हैं। विश्लेषन, अश्विनी जैसे शब्दों का भी ऐसा ही हल है।
हिन्दी राईटर साफ्टवेयर बहुत पसंद किया जा रहा है मेरे तजुर्बा है कि यह फोनेटिक की बोर्ड का होने के कारण नये यूजर के लिये अच्छा रहेगा पुराने लोग इसको अपनी हिन्दी युनिकोड स्पेलिंग के लिये भी प्रयोग कर रहे हैं। विन्डोज लाइव राइटर के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है उसे पढ़कर लगता है कि hindi IMe ही ठीक है
मेरा तो युनिकोड की समस्याओं और समाधान का सफर जारी है समय मिला तो इस पोस्ट को फिर एडिट करूंगा, साथ साथ उर्दू युनिकोड का सफर भी जारी है ।
बाकी फिर कभी ।
..............................................
unicode to krutidev
हिन्दी
हिन्दी
रोमन में लिखो हिन्दी हो जाएगी
http://quillpad.in/hindi/
डाउनलोड कुर्तिदेव फ़ॉन्ट 010
usefull software link
Subscribe to:
Posts (Atom)